Maa Par Kavita in Hindi | माँ पर कविता | Poem about Mother in Hindi

Maa Par Kavita in Hindi | माँ पर कविता | Poem about Mother in Hindi

Poem about Mother in Hindi – इस पोस्ट में माँ पर आधारित कुछ माँ पर कविता को इकट्ठा किया हैं. यह Maa Par Kavita in Hindi बहुत ही लोकप्रिय कविता हैं. जिसमे शैलेश लोढ़ा, सुनील जोगी, अंजू गोयल जैसे कवि द्वारा लिखित कविता है जो आपके दिल को छु जाएगी.

दोस्तों माँ के प्यार को कुछ शब्दों में व्यक्त करना बहुत मुश्किल हैं. इस दुनिया में आपको माँ से ज्यादा प्यार और कोई कर ही नहीं सकता हैं. आपके जीवन के राह में आने वाली सभी बाधाओं को हटाती हैं. माँ आपके बारे में सबकुछ जानती हैं. आपके कुछ कहे बिना ही आपको क्या चाहिए माँ समझ जाती हैं.

माँ पर कविता लिखना आसान काम नहीं हैं. यहाँ पर Poem about Mother in Hindi में कुछ लोकप्रिय कविता निचे दी गई हैं. हमें आशा हैं की यह आपको पसंद आएगी. Poem about Mother in Hindi, Maa Par Kavita in Hindi, माँ पर कविता, Maa Kavita, Short Poem on Mother in Hindi.

Maa Par Kavita in Hindi | माँ पर कविता | Poem about Mother in Hindi
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माँ पर कविता, Poem about Mother in Hindi, Maa Par Kavita in Hindi

बहुचर्चित कवि। लगभग 75 पुस्तकें प्रकाशित। विभिन्न राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में स्तंभ लेखन के ‍अलावा अनेक टीवी चैनलों पर प्रस्तुतियाँ दी हैं। अमेरिका, कनाडा, ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, नार्वे, दुबई, ओमान, सूरीनाम की काव्य यात्राएँ की हैं। नई पी‍ढ़ी के कवियों में ऊर्जावान रचनाकार के तौर पर ख्याति। मंच पर अद्‍भुत प्रस्तुति देने में महारत। ‘ हास्य वसंत’ त्रैमा‍‍‍सिकी का संपादन करते हैं।

किसी की खातिर अल्ला होगा किसी की खातिर राम
लेकिन अपनी खातिर तो है, माँ ही चारों धाम
जब आँख खुली तो अम्मा की, गोदी का एक सहारा था
उसका नन्हा सा आँचल मुझको, भूमंडल से प्यारा था।
उसके चेहरे की झलक देख, चेहरा फूलों-सा खिलता था
उसके स्तन की एक बूँद से, मुझको जीवन मिलता था

हाथों से बालों को नोंचा, पैरों से खूब प्रहार किया
फिर भी उस माँ ने पुचकारा, हमको जी भर प्यार किया

मैं उसका राजा बेटा था, वो आँख का तारा कहती थी
मैं बनूँ बुढ़ापे पे उसका, बस एक सहारा कहती थी
उँगली पकड़ चलाया था, पढ़ने विद्यालय भेजा था
मेरी नादानी को भी, निज अंतर में सदा सहेजा था
मेरे सारे प्रश्नों का वो, फौरन जवाब बन जाती थी

मेरी राहों के काँटे चुन वो, खुद गुलाब बन जाती थी
मैं बड़ा हुआ तो कॉलेज से, इक रोग प्यार का ले आया

जिस दिल में माँ की मूरत थी, वो रामकली को दे आया
शादी की पति से बाप बना, अपने रिश्तों में झूल गया
अब करवा चौथ मनाता हूँ, माँ की ममता को भूल गया
हम भूल गए उसकी ममता, मेरे जीवन की थाती थी
हम भूल गए अपना जीवन, वो अमृत वाली छाती थी

हम भूल गए वो खूद, भूखी रहकरके हमें खिलाती थी
हमको सूखा बिस्तर देकर, खुद गीले में सो जाती थी
हम भूल गए उसने ही, होंठों को भाषा सिखलाई थी
मेरी नींदों के लिए रातभर, उसने लोरी गाई थी
हम भूल गए हर गलती पर, उसने डाँटा-समझाया था

बच जाऊँ बुरी नजर से, काला टीका सदा लगाया था
हम बड़े हुए तो ममता वाले, सारे बंधन तोड़ आए
बंगले में कुत्ते पाल लिए, माँ को वृद्धाश्रम छोड़ आए
उसके सपनों का महल गिराकर, कंकर-कंकर बीन लिए
खुदगर्जी में उसके सुहाग के, आभूषण तक छीन लिए
हर माँ को घर के बँटवारे की, अभिलाषा तक ले आए

उसको पावन मंदिर से, गाली की भाषा तक ले आए
माँ की ममता को देख, मौत भी आगे से हट जाती है
गर माँ अपमानित होती, धरती की छाती फट जाती है
घर को पूरा जीवन देकर, बेचारी माँ क्या पाती है
रूखा-सूखा खा लेती है, पानी पीकर सो जाती है
जो माँ जैसी देवी घर के, मंदिर में नहीं रख सकते हैं

वो लाखों पुण्य भले कर लें, इंसान नहीं बन सकते हैं
माँ जिसको भी जल दे दे, वो पौधा संदल बन जाता है
माँ के चरणों को छूकर पानी, गंगाजल बन जाता है
माँ के आँचल ने युगों-युगों से, भगवानों को पाला है
माँ के चरणों में जन्नत है, गिरिजाघर और शिवाला है
हिमगिरि जैसी ऊँचाई है, सागर जैसी गहराई है

दुनिया में कितनी खूशबू है, माँ के आँचल से आई है
माँ कबीरा की साखी जैसी, माँ तुलसी की चौपाई है
मीराबाई की पदावली, खुसरो की अमर रुबाई है
माँ आँगन की तुलसी जैसी, पावन बरगद की छाया है
माँ वेद-ऋचाओं की गरिमा, माँ महाकाव्य की काया है
माँ मानसरोवर ममता का, माँ गोमुख की ऊँचाई है

माँ परिवारों का संगम है, माँ रिश्तों की गहराई है
माँ हरी दूब है धरती की, माँ केसरवाली क्यारी है
माँ की उपमा केवल माँ है, माँ हर घर की फुलवारी है
सातों सुर नर्तन करते जब, कोई माँ लोरी गाती है
माँ जिस रोटी को छू लेती है, वो प्रसाद बन जाती है
माँ हँसती है तो धरती का, जर्रा-जर्रा मुस्काता है

देखो तो दूर क्षितिज अंबर, धरती को शीश झुकाता है
माना मेरे घर की दीवारों में चंदा-सी मूरत है
पर मेरे मन के मंदिर में, बस केवल माँ की सूरत है
माँ साक्षात लक्ष्मी, दुर्गा, अनुसुइया, मरियम, सीता है
माँ पावनता में रामचरित, मानस है भगवत गीता है
अम्मा तेरी हर बात मुझे, वरदान से बढ़कर लगती है

हे माँ तेरी सूरत मुझको, भगवान से बढ़कर लगती है
सारे तीरथ के पुण्य जहाँ, मैं उन चरणों में लेटा हूँ
जिनके कोई संतान नहीं, मैं उन माँओं का बेटा हूँ
हर घर में माँ की पूजा हो, ऐसा संकल्प उठाता हूँ
मैं दुनिया की हर माँ के चरणों में, ये शीश झुकाता हूँ।

Poem about Mother in Hindi – चिंतन दर्शन जीवन सर्जन

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चिंतन दर्शन जीवन सर्जन
रूह नज़र पर छाई अम्मा
सारे घर का शोर शराबा
सूनापन तनहाई अम्मा

उसने खुद़ को खोकर मुझमें
एक नया आकार लिया है,
धरती अंबर आग हवा जल
जैसी ही सच्चाई अम्मा

सारे रिश्ते- जेठ दुपहरी
गर्म हवा आतिश अंगारे
झरना दरिया झील समंदर
भीनी-सी पुरवाई अम्मा

घर में झीने रिश्ते मैंने
लाखों बार उधड़ते देखे
चुपके चुपके कर देती थी
जाने कब तुरपाई अम्मा

बाबू जी गुज़रे, आपस में-
सब चीज़ें तक़सीम हुई तब-
मैं घर में सबसे छोटा था
मेरे हिस्से आई अम्मा
आलोक श्रीवास्तव

Maa Par Kavita in Hindi

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Maa Par Kavita in Hindi | माँ पर कविता | Poem about Mother in Hindi

चूल्हे की
जलती रोटी सी
तेज आँच में जलती माँ !
भीतर -भीतर
बलके फिर भी
बाहर नहीं उबलती माँ !

धागे -धागे
यादें बुनती ,
खुद को
नई रुई सा धुनती,
दिन भर
तनी ताँत सी बजती
घर -आँगन में चलती माँ !

सिर पर
रखे हुए पूरा घर
अपनी –
भूख -प्यास से ऊपर ,
घर को
नया जन्म देने में
धीरे -धीरे गलती माँ !

फटी -पुरानी
मैली धोती ,
साँस -साँस में
खुशबू बोती ,
धूप -छाँह में
बनी एक सी
चेहरा नहीं बदलती माँ !

कौशलेन्द्र

माँ पर कविता 

अंधियारी रातों में मुझको
थपकी देकर कभी सुलाती
कभी प्यार से मुझे चूमती
कभी डाँटकर पास बुलाती

कभी आँख के आँसू मेरे
आँचल से पोंछा करती वो
सपनों के झूलों में अक्सर
धीरे-धीरे मुझे झुलाती

सब दुनिया से रूठ रपटकर
जब मैं बेमन से सो जाता
हौले से वो चादर खींचे
अपने सीने मुझे लगाती

अमित कुलश्रेष्ठ

Maa Kavita

जन्म दात्री
ममता की पवित्र मूर्ति
रक्त कणो से अभिसिंचित कर
नव पुष्प खिलाती

स्नेह निर्झर झरता
माँ की मृदु लोरी से
हर पल अंक से चिपटाए
उर्जा भरती प्राणो में
विकसित होती पंखुडिया
ममता की छावो में

सब कुछ न्यौछावर
उस ममता की वेदी पर
जिसके
आँचल की साया में
हर सुख का सागर!

बृजेशकुमार शुक्ला

Short Poem on Mother in Hindi

माँ तुम्हारा स्नेहपूर्ण स्पर्श
अब भी सहलाता है मेरे माथे को
तुम्हारी करुणा से भरी आँखें
अब भी झुकती हैं मेरे चेहरे पर
जीवन की खूंटी पर
उदासी का थैला टाँगते
अब भी कानों में पड़ता है
तुम्हारा स्वर

कितना थक गई हो बेटी
और तुम्हारे निर्बल हाथों को मैं
महसूस करती हूँ अपनी पीठ पर
माँ
क्या तुम अब सचमुच नहीं हो
नहीं,
मेरी आस्था, मेरा विश्वास, मेरी आशा
सब यह कहते हैं कि माँ तुम हौ

मेरी आँखों के दिपते उजास में
मेरे कंठ के माधुर्य में
चूल्हे की गुनगुनी भोर में
दरवाज़े की सांकल में
मीरा और सूर के पदों में
मानस की चौपाई में
माँ
मेरे चारों ओर घूमती यह धरती
तुम्हारा ही तो विस्तार है।

शीला मिश्रा

Poem about Mother in Hindi  – बहुत याद आती है माँ

बहुत याद आती है माँ
जब भी होती थी मैं परेशान
रात रात भर जग कर
तुम्हारा ये कहना कि
कुछ नहीं… सब ठीक हो जाएगा ।
याद आता है…. मेरे सफल होने पर
तेरा दौड़ कर खुशी से गले लगाना ।
याद आता है, माँ तेरा शिक्षक बनकर
नई-नई बातें सिखाना

अपना अनोखा ज्ञान देना ।
याद आता है माँ
कभी दोस्त बन कर
हँसी मजाक कर
मेरी खामोशी को समझ लेना ।
याद आता है माँ
कभी गुस्से से डाँट कर
चुपके से पुकारना
फिर सिर पर अपना
स्नेह भरा हाथ फेरना ।
याद आता है माँ

बहुत अकेली हूँ
दुनिया की भीड़ में
फिर से अपना
ममता का साया दे दो माँ
तुम्हारा स्नेह भरा प्रेम
बहुत याद आता है माँ
अंजू गोयल

7. Maa Par Kavita in Hindi – मेरी आंखों का तारा ही

मेरी आंखों का तारा ही, मुझे आंखें दिखाता है.
जिसे हर एक खुशी दे दी, वो हर गम से मिलाता है.

जुबा से कुछ कहूं कैसे कहूं किससे कहूं माँ हूं
सिखाया बोलना जिसको, वो चुप रहना सिखाता है.

सुला कर सोती थी जिसको वह अब सभर जगाता है.
सुनाई लोरिया जिसको, वो अब ताने सुनाता है.

सिखाने में क्या कमी रही मैं यह सोचूं,
जिसे गिनती सिखाई गलतियां मेरी गिनाता है.

8 हम एक शब्द हैं तो वह पूरी भाषा है
हम कुंठित हैं तो वह एक अभिलाषा है
बस यही माँ की परिभाषा है.

हम समुंदर का है तेज तो वह झरनों का निर्मल स्वर है
हम एक शूल है तो वह सहस्त्र ढाल प्रखर

हम दुनिया के हैं अंग, वह उसकी अनुक्रमणिका है
हम पत्थर की हैं संग वह कंचन की कृनीका है

हम बकवास हैं वह भाषण हैं हम सरकार हैं वह शासन हैं
हम लव कुश है वह सीता है, हम छंद हैं वह कविता है.

हम राजा हैं वह राज है, हम मस्तक हैं वह ताज है
वही सरस्वती का उद्गम है रणचंडी और नासा है.

हम एक शब्द हैं तो वह पूरी भाषा है.
बस यही माँ की परिभाषा है.

Shailesh Lodha

8. माँ पर कविता – ओ मेरी प्यारी माँ

ओ मेरी प्यारी माँ,
सारे जग से न्यारी माँ.

मेरी माँ प्यारी माँ,
सुन लो मेरी वाणी माँ.

तुमने मुझको जन्म दिया,
मुझ पर इतना उपकार किया.

धन्य हुई मैं मेरी माँ,
ओ मेरी प्यारी माँ.

अच्छे बुरे में फर्क बताया,
तुमने अपना कर्तव्य निभाया.

अच्छी बेटी बनूंगी माँ,
ओ मेरी प्यारी माँ.

करूंगी तेरा मैं गुणगान,
करूंगी तेरा मैं सम्मान.

शब्द भी पड़ गए थोड़े तेरे गुणगान के लिए माँ,
ओ मेरी प्यारी माँ.

9. Maa Kavita – कभी जो गुस्से में आकर मुझे डांट देती

कभी जो गुस्से में आकर मुझे डांट देती
जो रोने लगूं में मुझे वो चुपाती
जो में रूठ जाऊं मुझे वो मनाती,

मेरे कपड़े वो धोती मेरा खाना बनाती
जो न खाऊं में मुझे अपने हाथों से खिलाती
जो सोने चलूँ में मुझे लोरी सुनाती,

वो सबको रुलाती वो सबको हंसाती
वो दुआओं से अपनी बिगड़ी किस्मत बनाती
वो बदले में किसी से कभी कुछ न चाहती,

जब बुज़ुर्गी में उसके दिन ढलने लगते
हम खुदगर्ज़ चेहरा अपना बदलने लगते
ऐश-ओ-इशरत में अपनी उसको भूलने लगते

दिल से उसके फिर भी सदा दुआएं निकलती
खुशनसीब हैं वो लोग जिनके पास माँ है।

10. Short Poem on Mother in Hindi

बचपन में माँ कहती थीं
बिल्ली रास्ता काटे,
तो बुरा होता है
रुक जाना चाहिए…

बचपन में माँ कहती थीं
बिल्ली रास्ता काटे,
तो बुरा होता है
रुक जाना चाहिए…

मैं आज भी रुक जाता हूँ
कोई बात है जो डरा
देती है मुझे..

यकीन मानो,
मैं पुराने ख्याल वाला हूँ नहीं …
मैं शगुन-अपशगुन को भी नहीं मानता…

मैं माँ को मानता हूँ…
मैं माँ को मानता हूँ….

दही खाने की आदत मेरी
गयी नहीं आज तक..
दही खाने की आदत मेरी
गयी नहीं आज तक..

माँ कहती थीं…
घर से दही खाकर निकल
तो शुभ होता है..

मैं आज भी हर सुबह दही
खाकर निकलता हूँ…
मैं शगुन-अपशगुन को भी नही मानता…

मैं माँ को मानता हूँ…
मैं माँ को मानता हूँ….

आज भी मैं अँधेरा देखकर डर जाता हूँ,
भूत-प्रेत के किस्से खोफ पैदा करते हैं मुझमें,
जादू , टोने, टोटके पर मैं यकीन कर लेता हूँ…

बचपन में माँ कहती थी
कुछ होते हैं बुरी नज़र लगाने वाले,
कुछ होते हैं खुशियों में सताने वाले…
यकीन मानों, मैं पुराने ख्याल वाला नहीं हूँ…
मैं शगुन-अपशगुन को भी नहीं मानता….

मैं माँ को मानता हूँ….
मैं माँ को मानता हूँ…

मैंने भगवान को भी नहीं देखा जमीन पर
मैंने अल्लाह को भी नहीं देखा
लोग कहते है,
नास्तिक हूँ मैं
मैं किसी भगवान को नहीं मानता

लेकिन माँ को मानता हूँ…
में माँ को मानता हूँ….||

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