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Happy ganesh chaturthi 2020 21 गणेश चतुर्थी २०२1
Happy ganesh chaturthi 2020 गणेश चतुर्थी २०२० देवों में प्रथम पूज्यनीय भगवान गणेश का इस वर्ष 2020 में २२ अगस्त को आगमन है, भगवान् गणेश से जुडी ढेरों तथ्य जानते है।
भगवान गणेश बुद्धि के दाता के साथ साथ रिद्धि, सिद्धि का दाता माने गए हैं। ऐसे माना जाता रहा है कि वह भक्तों की तरह तरह की समस्याओ, संकट, रोग, गरीबी को दूर करते है। गणेश चतुर्थी Ganesh Chaturthi का यह त्यौहार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी को मध्याह्न काल में, सोमवार, स्वाति नक्षत्र एवं सिंह लग्न में हुआ था।
इस वर्ष 2020 में यह गणेश चतुर्थी का पर्व शनिवार 22 अगस्त, 2020 को मनाया जाएगा।
शिवजी को गणेश जी के पिता, पार्वती जी को माता, कार्तिकेय (षडानन) भ्राता-भाई, ऋद्धि-सिद्धि (प्रजापति विश्वकर्मा की कन्याएं) पत्नियां, क्षेम व लाभ गणेश जी का पुत्र माना गया है। पुराणों में शिवजी, विष्णुजी, दुर्गाजी, सूर्यदेव के साथ-साथ गणेश जी का नाम हिन्दू धर्म के पांच प्रमुख देवों (पंच-देव) में शामिल हैं। गणेश जी की पूजा वैदिक और अति प्राचीन काल से की जाती रही है। और इसके तथ्य भी समय समय पर मिलते रहे है. गणेश जी वैदिक देवता हैं क्योंकि ऋग्वेद-यजुर्वेद आदि में गणपति जी के मंत्रों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
इसके साथ साथ यह इंडोनेशिया जैसा इस्मलामिक देश का प्रमाण जिसमे वहां के रुपयों में भी भगवान् गणेश की प्रतिमा छपी है, इससे साफ है, भगवान् गणेश भारत ही नहीं, भारत के आस पास के देशो में भी ऐसे प्रमाण है, जो गणेश जी के अस्तित्व को दर्शाता है। इंडोनेशिया के लोगो का भी यह विश्वास है कि भगवान गणेश बुद्धि, बल, और कला के देवता है। यही कारण है की उनके इस २००००रुपये के नोट पर एक तरफ भगवान गणेश की प्रतिमा तो दुसरे तरफ एक कक्षा की तस्वीर है, जिसमे बच्चे पढ़ाई करते नजर आ रहे है।
कुछ इतिहासकार बताते है कि गणेश चतुर्थी समारोह के मनाने का साक्ष्य सातवाहन, राष्ट्रकूट और चालुक्य वंशों के शासन से भी पता चलता है, जो कि 271 ईसा पूर्व से 1190 ईस्वी तक का है। संस्कृति के अनुसार गणेश चतुर्थी को shivaji महाराज के भी मनाया जाता रहा है।
श्री गणेश जी के प्रसिद्ध नाम शास्त्रों में इस प्रकार बताए गए हैं…
- सुमुख, 2. एकदंत, 3. कपिल, 4. गजकर्ण, 5. लम्बोदर, 6. विकट, 7. विघ्नविनाशन, 8. विनायक, 9. धूम्रकेतु, 10. गणाध्यक्ष, 11. भालचंद्र, 12. गजानन 13. गणेश 14. विघ्नहर्ता 15. अष्ट विनायक, पार्वती नंदन, गौरी पुत्र आदि गणेश जी के नाम है।
लगभग पुरे भारत वर्ष में यह गणेश चतुर्थी का त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। खासकर यह त्यौहार महाराष्ट्र में बहुत अधिक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। वैसे सभी राज्यों में तरह तरह के त्योहारों को मानते है, परन्तु कलकाता का नौरात्रि, गुजरात का नवरात्री गरबा, बिहार, उत्तरप्रदेश का छठ, ठीक उसी तरह महाराष्ट्र का गणेश चतुर्थी पुरे दुनिया भर में प्रसिद्ध है. जहाँ देश विदेशों से लोग इस पावन पर्व का लुप्त उठाने आते है।
महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी पर्व गणेशोत्सव के तौर पर मनाया जाता है। जो कि दस ग्यारह दिन तक चलता है और अनंत चतुर्दशी गणेश विसर्जन की जाती है।
महाराष्ट्र का गणेशोत्सव : Happy ganesh chaturthi 2020
महाराष्ट्र में गणेशोत्सव का पूरे दसो दिन महाराष्ट्र में रौनक छाई रहती है, लगभग हर गली चौराहे रात में रौशनी से नहाई रहती है, हर जगह, गली, रास्ते, बाजार, सब जगह लोगो की चहल पहल रहता है। गणेश जी की छोटे छोटे प्रतिमाओं से लेकर बड़े बड़े ऊँचे गणेश जी की प्रतिमाये बैठाई जाती है। सभी पंडालों को उत्सव के महीनो पहले से तैयार किया जाता है. लोग अपने घरों में भी गणेश जी की प्रतिमाये बैठाते है. पहले दिन से दसेव ग्यारहवे दिन तक घरो से लेकर पंडालों तक बच्चो से लेकर औरते, बूढ़े सभी गणेश भक्ति में मग्न हुए रहते है.
लोग गणेश की प्रतिमा को आधे दिन से लेकर 11 दिन तक मे विसर्जित करते है। आधा दिन, डेढ़ दिन, 5 दिन, 7 दिन या फिर 11वे दिन विर्सजित करते है। कुछ मूर्तियों को 6 वे दिन भी विसर्जित करने की मान्यता है, इस दिन गौरी गणपति नाम से गणेश को विसर्जित किया जाता है. गणेश की मूर्ति लाने वाले दिन से लेकर विसर्जन के दिन तक सड़को पर देखने वालों का मेला सा लग जाता है,
जगह भव्य आयोजन किया जाता है। कहीं चल चित्र तो कहीं कुछ सन्देश देने वाले कार्यक्रम रखे जाते है, तो कहीं तो लोग गणेश भगवान् की मूर्ति की ऊँचाई देखने चले जाते है. इन उचाईयो में कहीं १५ फिट, 20 फिट, यहाँ तक की कहीं पुरे नारियल की गणपति, या अन्य चाकलेट, मिठाईयों की भी गणपति बनाई जाती है, उसे देखने लोगो की भीड़ बनी रहती है। लोग मूर्ति को विसर्जन करने नदी, तालाब, या फिर समुद्र में ले जाते है।
अब प्रदूषण को ध्यान में रख कर कृत्रिम तालाब भी बनाने लगे है। साथ ही प्रदूषण करने वाली मूर्ति को प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनान्ते है उसके जगह एक फ्रेंडली गणपति बनाने का एक अच्छा प्रयास चला है, इससे प्रदूषण को भी रोक जाता है और त्योहार भी मजे से मनाया जा रहा है।
इन सब के बीच मुम्बई की बहुत से गणेश पंडाल या वहां की मूर्तिया मनोकामनाए पूरी करने वाले जगह में भी सुमार हो गया है, इन सब में लाल बाग के राजा, चिंतामणि, गणेश गली, आदि जगहों की मूर्तियों सिद्ध मानी जाती है।
लाल बाग के राजा के यहाँ हर वर्ष लाखो श्रद्धालु दर्शन के लिए जाते है. जिनमे क्या गरीब क्या अमीर सभी लाइन लगा कर भगवान गणेश के दर्शन में जुट जाते है। इन पुरे जगहों की अपनी मान्यताये है, और उनके शोभा है जिसे देखने लाखो लोग देश ही नहीं विदेशो से भी अब आने लगे है।
इन सभी गणेश मूर्ति का विसर्जन का आखिरी दिन मुंबई के समुन्द्र किनारे देखने लायक होता है, चारो तरफ लाखो की तादाद में लोग दिखते है। बस एक ही शोर चारो तरफ गूंजता है “गण पति बाप्पा मोरया” – “पुढचा वर्षी लौकर या” – यानी गणेश भगवान् की जय हो और अगले वर्ष तू जल्दी आ, यही कामना के साथ गणेश को विसर्जित करते है। मुंबई की गिरगाव चौपाटी, जुहू बीच, वर्शोवा बीच, पवई तालाब में पुरे करीब ११ दिन मूर्तियों को विसर्जित किया जाता है.
Top 7 Famous Mumbai Ganesh Idols मुबई की टॉप 7 गणेश मूर्ति और पंडाल
- Lalbaugcha Raja लाल बाग का राजा
- Ganesh Galli Mumbaicha Raja गणेश गली मुबई का राजा
- Khetwadicha Ganraj खेतवाडी के गणराज
- GSB Seva Kings Circle GSB कोलोनी के राजा
- Andhericha Raja अँधेरी के राजा
- Girgaoncha Raja गिरगांव चौपाटी
- Bhandarkarcha Raja
राखी का त्यौहार क्यों मनाया जाता है? विस्तार से पढ़े.
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Happy ganesh chaturthi 2020 गणेश चतुर्थी 2020 का मुहूर्त
- गणेश चतुर्थी पर्व में मध्याह्न के समय मौजूद चतुर्थी ली जाती है।
- इस यदि दिन रविवार या मंगलवार हो तो यह महा-चतुर्थी हो जाती है।
गणेश चतुर्थी मुहूर्त्त…
गणेश पूजन के लिए मध्याह्न मुहूर्त : 11:06:04 से 13:39:41 तक।
अवधि : 2 घंटे 33 मिनट
समय जब चन्द्र दर्शन नहीं करना है : 09:05:59 से 21:25:00 तक।
गणेश चतुर्थी 2020 उपवास रखने और पूजन की विधि
- इस दिन प्रातः स्नान करने के बाद आप अपनी आवश्यकता अनुसार सोने, तांबे या मिट्टी की गणेश प्रतिमा लें।
- एक कलश में जल भरकर कलश के ऊपर मुंह पर साफ सुथरा लाल वस्त्र बांधकर उसके ऊपर गणेश जी को विराजमान करें।
- गणेश जी को सिंदूर व दूर्वा अर्पित करें। फल, मिष्ठान आदि चडावे में चडाने के बाद उसे उतर लें और गरीबों और ब्राह्मण में बाँट दें।
- शाम के समय गणेश जी का पूजन करें। गणेश चतुर्थी की कथा, गणेश चालीसा व आरती करें उसके बाद चन्द्रमा को अर्घ्य देना चाहिए। पर ध्यान रहे आपको चन्द्रमा को नहीं देखना है, आप अपने आँख नीचे कर लें।
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
Vakra-Tunndda Maha-Kaaya Suurya-Kotti Samaprabha |
Nirvighnam Kuru Me Deva Sarva-Kaaryessu Sarvadaa ||
Happy ganesh chaturthi 2020
ganesh chaturthi images
मान्यता है की इस दिन चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए वरना कलंक का भागी होना पड़ता है। अगर भूल से चन्द्र दर्शन हो जाए तो इस दोष के निवारण के लिए मंत्र का 28, 54 या 108 बार जाप करें। श्रीमद्भागवत के दसवें स्कन्द के 57वें अध्याय का पाठ करने से भी चन्द्र दर्शन का दोष समाप्त हो जाता है।
चन्द्र दर्शन दोष निवारण मंत्र:
सिंहःप्रसेनमवधीत् , सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव, ह्येष स्यमन्तकः।।
ganesh chaturthi wishes
गणेश चतुर्थी का महत्व गणेश चतुर्थी २०२०
भारतीय पुराणों ले अनुसार गणेश जी को विद्या-बुद्धि देनेवाले, विघ्न को दूर करनेवाले, मंगल और रक्षा करनेवाले , सिद्धिदायक, समृद्धि, शक्ति देनेवाले माना गया है। वैसे तो हर महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को “संकष्टी गणेश चतुर्थी” व शुक्लपक्ष की चतुर्थी को “विनायकी गणेश चतुर्थी” मनाया जाता है, लेकिन वार्षिक गणेश चतुर्थी विशेष रूप से मनाया जाता है।
यदि मंगलवार को गणेश चतुर्थी आए तो उसे अंगारक चतुर्थी कहते हैं। ऐसा माना जाता है पूजा व व्रत करने से अनेक पाप और दोष हट जाते है। अगर रविवार को यह चतुर्थी पड़े तो भी बहुत शुभ व श्रेष्ठ फलदायी मानी गई है।
याद रखें तुलसी के पत्ते (तुलसी पत्र) गणेश पूजा में इस्तेमाल नहीं हों। तुलसी को छोड़कर बाकी सब पत्र-पुष्प गणेश जी को प्रिय हैं।
गणेश जी से जुड़ी कथाएं…
पौराणिक मतों के अनुसार गणेश जी से जुड़ी कुछ कथाएं प्रचलित हैं…
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ‘ॐ’ को साक्षात गणेश जी का स्वरुप माना गया है। जिस प्रकार प्रत्येक मंगल कार्य से पहले गणेश-पूजन होता है, उसी प्रकार प्रत्येक मन्त्र से पहले ‘ॐ’ लगाने से उस मन्त्र का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। इस तरह से भगवान् गणेश सभी में श्रेष्ट माने जाते है।
गणेश जी ने गर्भ से जन्म नहीं लिया
माना जाता है की गणेश जी ने गर्भ से जन्म नहीं लिया, इन्हें उत्पन्न किया गया. यह घटना कुछ ऐसी है,
एक बार पार्वती जी स्नान करने के लिए जा रही थीं। उन्होंने अपने शरीर के मैल से एक पुतला निर्मित कर उसमें प्राण फूंके और गृहरक्षा (घर की रक्षा) के लिए उसे द्वारपाल के रूप में नियुक्त किया। ये द्वारपाल गणेश जी थे।
माँ पार्वती स्नान करने जा रही थी, उसी समय उनके मन में यह ख्याल आया की कोई ऐसा हो जो किसी भी व्यक्ति विशेष को उनके स्नान गृह में आने न दें, वैसे तो उनके पास बहुत सेवक थे पर लगभग सभी शिव जी की सेवा में लगे रहते थे, तब उन्होंने अपने पास रखे चन्दन, मिट्टी और शरीर से एक मूर्ति बनाई और उसमे जान डाल दी, उसे स्नान गृह के मुख्य द्वार पर पहरे दारी के लिए रख दी.
कुछ समय बाद वहां भगवान् शिव जी भी आ गए, परन्तु वह सेवक नहीं जानता था की भगवान् shiv कौन है, वह सेवक शिव जीको अंदर जाने से रोकने लगा, और समस्या यह था की भगवान् शिव भी उसे वहां पहली बार देख रहे थे, गणेश के बार बार मना करने पर भी शिव जी अंदर जाना चाहते थे, शिव जी अपनी पहचान भी बताये पर गणेश को कहाँ पता था कुछ भी वह तो अवतरित बालक था, और माँ पार्वती ने तो कहा रखा था किसी को भी अंदर आने न देना. बस वह तो अपना कर्तव्य पूरा कर रहा था।
शिव जी भी अपने जिद पर अड़ गए उन्हें लगा की यह को मायावी है और बालक गणेश भी अपने कर्तव्य पर। फिर क्या था दोनों में लडाई शुरू हो गया, इस लडाई में दोनों ही बराबर का टक्कर देने लगे, तब शिव जी और भी अधिक क्रोधित हो गए और उन्होंने अपनी शक्ति का उपयोग कर गणेश पर त्रिशूल से प्रहार कर दिए जिससे बालक गणेश को अपने जान से हाथ धोना पड़ा।
यह बात जब माँ पार्वती को पता चला की बालक सेवक का शिव जी ने गर्दन काट कर मार दिए है तो वह भागी चली आयी, और तांडव करने लगी सभी को उस बालक सेवक के बारे में पूरी जानकारी दी, यह सुनकर शिव जी को बड़ा दुःख हुआ, पर माँ पार्वती उसे जीवित चाहती थी यही कारण है सभी देव, देवता, देवियाँ वहां आयी, और उनके कहे अनुसार बालक को जीवित करने में लग गए।
इसलिए वन में सबसे पहले जो प्राणी मिला उसका मस्तक गणेश को लगाया गया, वह मस्तक था गज यानी हाथी का मस्तक गणेश को लगाया गया, गज का सिर जुड़ने के कारण ही उनका नाम गजानन पड़ा। और उस सेवक बालक गणेश को गणेश नाम दिया गया, गणेश का अर्थ होता है गणो में श्रेष्ट यानी की सभी देवों में सबसे पहले, इसलिए आज भी किसी भी प्रकार की पूजा होती है तो भगवान गणेश की सबसे पहले पूजा की जाती है।
परशुराम गणेश जी में लडाई
मान्यता है कि एक बार जब परशुराम जी शिव जी और पार्वती जी के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत आये। परन्तु उस समय शिव जी और पार्वती जी निद्रा में थे और मिलाना संभव नहीं था, गणेश जी बाहर पहरा दे रहे थे। गणेश जी ने परशुराम जी को शिव जी और पार्वती जी उस समय मिलने नहीं देना चाहते थे, इसलिए उन्हें वह वहीँ रोकने लगे। यहाँ पर दोनों के जिद के कारण इस पर विवाद हो गया और अंततः परशुराम जी ने अपने परशा (कुल्हाड़ी की तरह दिखने वाला शस्त्र) गणेश जी पर प्रहार किये जिससे गणेश जी का एक दांत कट गया। इसलिए गणेश जी तब से “एकदन्त” नाम से भी पुकारा जाता है।
गणेश जी की सवारी एक छोटा सा चूहा
गणेश जी कद काठी से एक दम मोटे और तंदुरुस्त है तो उनका सवारी कोई मोटा और बलवान होना चाहिए तो उनका सवारी मुसक यानी की चूहा है, यह कैसे हुआ?
भगवान शिव जी के पास एक दिन बहुत से ऋषि और कुछ लोग आये अपनी समस्या लेकर। समस्या यह था की ऋषि बताने लगे उनके यहाँ घर खेत खलियान सब जगह चूहों ने उत्पात मचाये रहते है, सभी अनाज खा जाते है, घरों में गड्डे कर दिए है, जिससे उन्हें बहुत परेशानी हो रही थी। तब भगवान शिव जी गणेश जी को यह कार्य सौपा की वह जाकर इन समस्याओ का समाधान निकाले। गणेश जी वहां गए और चूहों को दण्डित किये और उसे अपनी सवारी बना लिए।
कार्तिक और गणेश में लडाई
एक और घटना जिससे गणेश जी की बुद्द्धि का पता चलता है। कार्तिकेय और गणेश में अक्सर झगड़े होते रहते थे. वैसे ही जैसे दो भाईयों में हुआ करता है. ठीक कार्तिकेय और गणेश भी इसी तरह लड़ते रहते थे। गणेश जी कार्तिकेय को १२ आंख बोलकर चिड़ाते तो कार्तिकेय गणेश को बड़ी पेट, बड़े कान, लंबी नाक वाला चिड़ाते साथ ही साथ उनमे कौन श्रेष्ट है इस बात को लेकर भी झगड़े होते रहते थे।
तब पार्वती इन सब से तंग आकर भगवान शिव को यह सब बात बतायी, शिवजी ने उन्हें एक शर्त पूरा करने को कहा की तुम दोनों में से जो भी इस बारह्मांड का तीन बार सबसे पहले चक्कर लगा कर जो आयेगा वह ही श्रेष्ट होगा, दोनों ने हां कर दिए।
अब कार्तिकेय बहुत खुश हुए वह सोचने लगे इसमें तो मै ही जीतूँगा, क्यूंकि गणेश तो मोटे कद वाला है और उसकी सवारी चूहा छोटा सा, यह दौड़ वह पूरा नहीं कर पायेगा।
दोनों तैयार हो गये, कार्तिकेय अपनी सवारी मोर और गणेश अपनी सवारी चूहे पर सवार हो कर दौड़ में सामिल हो गये।
कार्तिकेय आगे बड गए पर गणेश वहीँ खड़े होकर कुछ विचार करने लगे, कुछ समय सोचने के बाद गणेश भगवान पिता शिव जी और माँ पार्वती को एक जगह बैठाकर उनके चरों ओर घुमने लगे और उनकी वंदना करने लगे। वंदना और चक्कर पूरा हो जाने के बाद वह वहीँ बैठकर कार्तिकेय के आने का इन्जार करने लगे। कार्तिकेय तो अब तक यह सोचकर खुश थे की वह यह दौड़ जित गए है और अब वही श्रेष्ट होंगे।
आते ही सबसे पहले गणेश को देख वह आश्चर्य चकित हो गए और पूछने लगे तुम पहले कैसे यहाँ आये? तुम्हे तो कहीं भी बीच रस्ते में नहीं देखा, तुमने बेमानी की है. और यह कहकर कार्तिकेय गुस्सा होने लगे।
तब गणेश जी बताते है, मैं ने ब्रह्माण्ड के चक्कर तुमसे पहले लगा चूका हूँ।
कार्तिकेय ने पूछा वह कैसे?
गणेश जी बताने लगे मेरे लिए तो पूरा ब्रह्माण्ड मेरे माता पिता के चरणों में नजर आता है, वही मेरे आराध्य है, वही मेरे ब्रह्माण्ड है, इसलिए मैंने उन्ही के चक्कर लगा कर उनकी आराधना की है, इसलिए यह दौड़ मै जीत गया हूँ।
कार्तिकेय जी अब इस दौड़ का फैसला माँ पार्वती और पिता शिवजी पर छोड़ते है, परन्तु माँ पार्वती और पिता शिवजी गणेश की बुद्धि और चतुरता भरी बातों से बहुत मोहित हो जाते है और इस दौड़ का श्रेय गणेश जी को देते है इस बात से गणेश जी और वेदव्यास ने लिखी महाभारत कार्तिकेय जी को बड़ा ही तकलीफ होता है और आहत होते है जिससे नाराज हो कर वह भारत के दक्षिण कीओर चले जाते है. यही कारण है भारत के दक्षिण में कार्तिकेय जी की पूजा अर्चना बड़े ही धूमधाम से होती है।
गणेश जी ने लिखा महाभारत
विष्णु के अवतार माने जाने वाले वेदव्यास स्वयं महाभारत की घटनाओं के साक्षी थे। साथ ही वे वेदों के बड़े जानकार भी थे। वेदों को उन्होंने सरल भाषा में लिखा था। वेदव्यास चाहते थे महाभारत की बातें जन जन तक जाए यही कारण था वह महाभारत को लिखना चाहते थे, परन्तु समस्या यह था की पूरी घटना को सोचना, समझना फिर लिखना एक साथ संभव नहीं है और समय बहुत लगेगा, इसलिए वह ब्रह्मा जी के पास गए और अपनी समस्या को बताये.
उस समय लेखन सुविधा नहीं होने से ग्रंथों के ज्ञान को वाणी द्वारा ही बताया जाता था। भगवान ब्रह्मा चाहते थे कि दर्शन, वेद तथा उपनिषदों का ज्ञान लुप्त नहीं हो, इसके लिए इसे लिपिबद्ध किया जाए। इसलिए ब्रह्मा ने महर्षि वेद व्यास को महाभारत लिखने की प्रेरणा दी। उन्होने 18 पुराणों की भी रचना की थी।
जब ब्रह्मा ने वेदव्यास को महाभारत लिखने के लिए अनुरोध किया, तो व्यासजी ने ऐसे लेखक की मांग की जो उनकी कथा को सुन कर उस लिखता जाए। श्रुतलेख के लिए व्यास ने भगवान गणेश से अनुरोध किया।
बहुत कम लोग जानते है कि गणपति रिद्धि-सिद्धि के दाता के साथ साथ ज्ञानी एक अच्छे लेखक भी हैं। गणपति ने ही पौराणिक कथाओं को लुप्त होने से बचाने के लिए वेदव्यास के अनुरोध पर महाभारत को सरल भाषा में लिपिबद्ध किया था। यही कारण है गणेश जी को बुद्धि और ज्ञान के दाता भी कहते है।
गणेशजी ने एक शर्त रखी कि व्यासजी को बिना रुके पूरी कथा का वर्णन करना होगा। व्यासजी ने इसे मान लिया और गणेशजी से अनुरोध किया कि वे भी मात्र अर्थपूर्ण और सत्य बातें, समझ कर लिखें। इसके पीछे उनकी धारणा यह थी कि महाभारत और गीता सनातन धर्म के सबसे प्रामाणिक पाठ के रूप में स्थापित हो।
इसके लिए बुद्धि के देवता गणेश जी का सहयोग बहुत ही महत्वपूर्ण था। इस लिए महाभारत में वर्णन की गईं घटनाएं सत्य और प्रमाणिक वृत्तांत मानी जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि व्यासजी जो भी श्लोक बोलते थे, गणेशजी उसे बड़ी तेजी से लिख लेते थे। इसलिए व्यासजी ने गणेशजी की गति को रोकने करने के लिए सरल श्लोकों के बाद एक बहुत ही कठिन श्लोक बोलते थे, जिसे गणेश जी को समझने और लिखने में थोड़ा समय लग जाता था।
इससे व्यासजी को आगे के श्लोक और कथा कहने के लिए कुछ समय मिल जाता था। भगवान गणेश ने ब्रह्मा द्वारा निर्देशित काव्य महाभारत को दुनिया का सबसे बड़ा महाकाव्य कहलाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
लोकमान्य तिलक जी ने शुरू सर्वजनिक त्यौहार
Lokmanya tilak and festival
भारत में त्योहारों को सार्वजनिक तौर पर मानने का श्रेय लोकमान्य तिलक जी को जाता है।
दरअसल अंग्रजों ने सार्वजनिक सामाजिक, राजनीतिक समारोह, सभी क्रांतिकारी संगठन, क्रांतिकारीयों और लोगो को आपस में मिलने से रोक लगा दिया। कोइ भी सड़को पर जमा नहीं होंगे, आपस में नहीं मिलेंगे। ऐसे कठोर नियम लगा रखे थे।
लोकमान्य तिलक यह भली भांति जानते थे कि भगवान गणेश को हर व्यक्ति पूजा करता है, चाहे वह उच्च जाति हो या निम्न जातियों के लोग। लोकमान्य गंगाधर तिलक जी गणेश चतुर्थी को एक राष्ट्रीय त्योहार के रूप में लोगो को प्रेरित किया इसके पीछे लोकमान्य तिलक जी राष्ट्रिय हित ही था, ऐसा करने से उच्च जाति और निम्न जाति, ब्राहमण और गौर ब्राह्मणों में जाति धर्म को लेकर जो एक बड़ी दिवार थी उसे दूर करने में यह अहम् भूमिका था।
1893 में, लोकमान्य तिलक जी ने सामाजिक और धार्मिक उत्सव के रूप में गणेश उत्सव का आयोजन किया। यह वह था त्योहारों को सार्वजनिक रूप देने से एक फायदा यह था अंग्रजो धर्म के बीच आयेंगे नहीं, और दूसरा फायदा यह की लोगो आपमें मिलने लगे, अपने क्रिया कलापों को पूजा के दौरान उत्सव के दौरान आसानी से एक दुसरे को बताते थे।
इन त्यौहारों को अधिक दिनों तक मानना,विशाल गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन की परंपरा, मंडपों और भगवान गणेश की प्रतिमाओ के साथ बड़े-बड़े पोस्टर, पर्चे लगाए थे। यह सभी त्योहार सभी जातियों और समुदायों के लोगों के लिए एक बैठक स्थल के रूप परिवर्तित हो गया था। इस तरह से गणेशोत्सव, महाशिवरात्रि जैसे बड़े त्योहारों का आयोजन लोकमान्य तिलक जी ने किया था।
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