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worker day and maharashtra day मजदुर दिवस और महाराष्ट्र दिवस
मजदुर दिवस और महाराष्ट्र दिवस worker day and maharashtra day
Labour Day / Worker Day & Maharashtra Day
प्रान्तों और राज्यों कि रचना की मांग
The demand for creation of provinces and states
भारत के स्वतंत्रता के पश्चात् और जब राज्यों का गठन हो रहा था तब भाषा के आधार पर प्रान्तों और राज्यों कि रचना की मांग बढ़ने लगा. जगह जगह इसको लेकर भी आन्दोलन हुए. कन्नड़ भाषा वाले लोगों को कर्नाटक राज्य, तेलुगु भाषी लोगों को आंध्र प्रदेश और मलयालम भाषी लोगों को केरल और तमिल को तमिलनाडु राज्य जैसे कवायद शुरू हुयी और यही कारण है कि महाराष्ट्र में भी यह मांग बढ़ने लगा.
International Labour Day
मजदुर दिवस और महाराष्ट्र दिवस worker day and maharashtra day
यह आंदोंलन १९४६ में ही संयुक्त महाराष्ट्र आन्दोलन के तौर पर शुरू हो चूका था. पहले गुजरात और महाराष्ट्र एक ही राज्य थे. जिसमे मराठी और गुजराती सामिल थे. इसलिए इन दोनों राज्यों को पहले बोम्बे नाम से जाना जाता था. यहाँ तक कि भाषावार प्रान्त रचना कि मांग लोकमान्य तिलक जी ने १९१५ में ही रख दी थी. परन्तु पहले देश फिर प्रदेश कि बात के कारण तिलक जी को पीछे हटना पड़ा.
महाराष्ट्र निमार्ण कि बात : मजदुर दिवस और महाराष्ट्र दिवस worker day and maharashtra day
Maharashtra construction –
२८ जुलाई १९४६ को शंकर राव देव कि अध्यक्षता में भी महाराष्ट्र निमार्ण कि बात उठाये थे जिसमे मुंबई, मध्य प्रान्त, मराठवाडा, गोमान्तक का समावेश हो. आजादी के कुछ महीने पूर्व संविधान सभा के अध्यक्ष डा.राजेंद्रप्रसाद ने १७ जून १९४७ को भाषावार प्रान्त रचना के लिए दार कमीशन कि स्थापना किये. परन्तु दार कमीशन में बात नहीं बनी तब आगे चल कर प्रान्त रचना को और ठीक करने के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरु, वल्लभभाई पटेल, और पट्टाभिसीतारमैया ने २६ दिसम्बर १९४८ को जे.वि.पि समिति जो इन तीनो के नाम के पहले अक्षर के आधार पर गठन किया गया.
“राज्य पुनरचना आयोग” का गठन Formation of “State Reconstruction Commission”
मजदुर दिवस और महाराष्ट्र दिवस worker day and maharashtra day
भारत सरकार ने न्यायमूर्ति एस.फजल.अली कि अध्यक्षता में “राज्य पुनरचना आयोग” का गठन २९ दिसम्वर १९५३ को किया. और जिसके तहत 10 अक्तूबर १९५५ को मुंबई को द्विभाषी राज्य बनाने की बात राखी गयी. परन्तु महाराष्ट्र के लोग इस बात को मानने से इंकार कर दिया, मुंबई को महाराष्ट्र में सम्मलित करने के लिए मुंबई में महाराष्ट्र के जगह जगह आन्दोलन हुए मरने मारने कि बाते होने लगी. मुंबई में कामगार मैदान पर सभाए हुयी. जनांदोलन तैयार होने लगा जिसमे औरते भी सहभाग हुई जिसमे खासकर सुमतिबई गोरे, इस्मत चुगताई, तारा रेड्डी, कमला ताई मोरे, जैसी अनेक महिलाये थी.
१०६ लोगो को अपनी जान गवानी पड़ी 106 people lost their lives : मजदुर दिवस और महाराष्ट्र दिवस
hutatma chowk
७ नवम्बर १९५५ को श्रमिको कि सभा हुआ, जिसमे मजदुर संघटन, शेतकरी कामगार, जनसंघ जैसे दलों ने हिस्सा लिया, इसके अध्यक्ष एस.एम जोशी थे जो मुंबई व विदर्भ सहित संयुक्त महाराष्ट्र की माँग किये. विधान सभा पर एक विशाल जुलुस निकला गया उस समय मोरारजी देसाई मुख्यमंत्री थे. कामगार मैदान में ५० हजार से अधिक कामगार और लोगो ने भाग लिया पर इस जुलुस पर लाठियां चलाये गए, उसके बावजूद भी ये अपनी मांग पर बने रहे. यह आन्दोलन इतना व्यापक बना जो गाँव देहात तक पहुंचा. फिर से जन आन्दोलन हुआ, विशाल जन समूह इस आन्दोलन में भाग लिए लेकिन राज्य सरकार द्वारा निर्ममता से गोलियां चलाने को कहा गया जिसमे करीब १०६ लोगो को अपनी जान गवानी पड़ी.
इन १०६ लोगो के लिए आगे चलकर महाराष्ट्र निर्माण में योगदान के लिए मुंबई के फ्लोरा फाउनटेन के पास हुतात्मा स्मारक बनाया गया.
1 नवंबर १९५६ को द्विभाषी राज्य मुंबई का गठन हुआ. इसके बाद लोकसभा , विधान सभा, नगर निगम में चुनाव हुआ चुनावी परिणाम से स्पष्ट था कि जनता द्विभाषी राज्य के पक्ष में नहीं है.
महाराष्ट्र राज्य निर्माण Maharashtra state construction : मजदुर दिवस और महाराष्ट्र दिवस worker day and maharashtra day
३० नवंबर १९५७ को प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु जी का शिवाजी महाराज कि प्रतिमा का अनावरण करने के लिए आये थे इसी समय फिर से एस एम् जोशी, जयंतराव तिलक, जैसे बड़े नेताओ के नेत्रित्व में विशाल जुलुस प्रदर्शन हुआ. जिसे देख पंडित जवाहरलाल नेहरु जी इस पर विचार करने लगे, आगे चलकर इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में केंद्र ने दो भाषी राज्य गुजरात और महाराष्ट्र कि रचना के लिए मुंबई पुनरचना कानून को 25 अप्रैल १९६० को पारित किया और इसके अनुसार 1 मई १९६० को महाराष्ट्र राज्य का निर्माण हुआ. उसके बाद महाराष्ट्र के प्रथम मुख्यमंत्री के तौर पर यशवंत राव चव्हाण ने महाराष्ट्र कि कमान संभाली.
महाराष्ट्र राज्य निर्माण में आंदोलनों को प्रखर करने में आचार्य अत्रे के मराठा समाचार पत्र, बाला साहेब ठाकरे के मावला उपनाम से कार्टून बनाकर, लोकशाहीर अन्नाभाऊ साठे, शाहिर अमर शेख, ने अपनी लेखनी से जन आन्दोलन को और व्यापक रूप दिए.
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