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रविन्द्र नाथ टैगोर Ravindra Nath Taigor
रवीन्द्रनाथ टैगोर ज्यादातर अपनी पद्य कविताओं के लिए जाने जाते है, बचपन से ही उनकी कविता, छन्द और भाषा में अद्भुत प्रतिभा का आभास लोगों को मिलने लगा था। उन्होंने पहली कविता आठ साल की उम्र में लिखी थी और सन् १८७७ में केवल सोलह साल की उम्र में उनकी प्रथम लघुकथा प्रकाशित हुई थी। रवीन्द्रनाथ टैगोर जी द्वारा दो देश एक भारत और दूसरा बांग्लादेश के राष्ट्रगान लिखे है.
रविन्द्र नाथ टैगोर Ravindra Nath Taigor
जीवनसाथी : मृणालिनी देवी
जन्म स्थान कलकत्ता
जन्मदिन: 07 मई 1861
मृत्यु: 07 अगस्त 1941
रविन्द्र नाथ टैगोर Ravindra Nath Taigor की रचनाये:
उपन्यास: गोरा, घरे बाइरे, चोखेर बाली, नष्टनीड़, योगायोग; कहानी संग्रह: गल्पगुच्छ; संस्मरण: जीवनस्मृति, छेलेबेला, रूस के पत्र; कविता : गीतांजलि, सोनार तरी, भानुसिंह ठाकुरेर पदावली, मानसी, गीतिमाल्य, वलाका; नाटक: रक्तकरवी, विसर्जन, डाकघर, राजा, वाल्मीकि प्रतिभा, अचलायतन, मुक्तधारा,
वे एकमात्र कवि हैं जिनकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं – भारत का राष्ट्र-गान ‘जन गण मन’ और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बाँग्ला’ उनकी ही रचनाएँ हैं।
रवीन्द्रनाथ टैगोर जी प्रतिभा संपन्न Life of Rabindra Nath Tagore
रवीन्द्रनाथ टैगोर जी को बचपन से ही कविताये और कहानियां लिखने का शौक था. यही कारण है वह एक बांग्ला कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार जैसे संज्ञाओ से पहचाने जाते है. भारतीय संस्कृत का परिचायक थे रवीन्द्रनाथ टैगोर जी, आमतौर पर उन्हें आधुनिक भारत का असाधारण सृजनशील कलाकार माना जाता है।
उनकी प्रकाशित कृतियों में गीतांजली, गीताली, गीतिमाल्य, कथा ओ कहानी, शिशु, भोलानाथ, कणिका, क्षणिका, खेया आदि प्रमुख हैं। उन्होंने कुछ पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया। अंग्रेज़ी अनुवाद के बाद उनकी प्रतिभा पूरे विश्व में फैली। टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की।
मानवता फिर देश भक्ति : रविन्द्र नाथ टैगोर Ravindra Nath Taigor
टैगोर जी ने ही गान्धीजी को महात्मा का विशेषण दिया था। उनकी काव्यरचना गीतांजलि के लिये उन्हे सन् १९१३ में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। सन् १९१५ में उन्हें राजा जॉर्ज पंचम ने नाइटहुड की पदवी से सम्मानित किया परन्तु जिसे उन्होंने सन् १९१९ में जलियाँवाला बाग हत्याकांड के विरोध में वापस कर दिया था। जलियांवाला हत्याकांड उनके दिलों दिमाग पर एक चुभन सी थी यही वजह है कि उन्होंने इसका विरोध अपने सम्मान को लौटकर जाताना उचित समझा. वे मानवता को देश भक्ति से ऊपर रखते थे.
मनुष्य और ईश्वर के बीच जो चिरस्थायी सम्पर्क है, उनकी रचनाओं के अन्दर वह अलग-अलग रूपों में उभर आता है। साहित्य की शायद ही ऐसी कोई शाखा हो, जिनमें उनकी रचना न हो – कविता, गान, कथा, उपन्यास, नाटक, प्रबन्ध, शिल्पकला – सभी विधाओं में उन्होंने रचना की। उनकी प्रकाशित कृतियों में गीतांजली, गीताली, गीतिमाल्य, कथा ओ कहानी, शिशु, भोलानाथ, कणिका, क्षणिका, खेया आदि प्रमुख हैं। उन्होंने कुछ पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया। अंग्रेज़ी अनुवाद के बाद उनकी प्रतिभा पूरे विश्व में फैली।
रविन्द्र नाथ टैगोर Ravindra Nath Taigor
टैगोर जी कि काव्यात्मक कार्य, बांग्ला भाषा में उनके लिखे साहित्य को एक नई दिशा दी. टैगोर की रचनायें बांग्ला साहित्य में एक नई ऊर्जा ले कर आई। दर्जनों साहित्य रचनाये समाज को उभारने में सक्षम रही उनकी साहित्य रचना में चोखेर बाली, घरे बहिरे, गोरा आदि शामिल है। उनके इसी परिवर्तन और साहित्य को नई दिशा और साहित्य में जान डालने वाले रवीन्द्रनाथ जी को 1913 ईस्वी में गीतांजलि के लिए इन्हें साहित्य का नोबल पुरस्कार मिला जो कि एशिया मे प्रथम विजेता साहित्य मे है।
रविन्द्र नाथ टैगोर Ravindra Nath Taigor की चुनिंदा कविताएं-
कहाँ मिली मैं ? कहाँ से आई ? यह पूछा जब शिशु ने माँ से…
Rabindra Nath Tagore Poem : Kahan Mili Main? Kahan se Aaee
कहाँ मिली मैं ? कहाँ से आई ? यह पूछा जब शिशु ने माँ से
कुछ रोती कुछ हँसती बोली, चिपका कर अपनी छाती से
छिपी हुई थी उर में मेरे, मन की सोती इच्छा बनकर
बचपन के खेलों में भी तुम, थी प्यारी-सी गुड़िया बनकर
मिट्टी की उस देव मूर्ति में, तुम्हें गढ़ा करती बेटी मैं
प्रतिदिन प्रातः यही क्रम चलता, बनती और मिलती मिट्टी में
कुलदेवी की प्रतिमा में भी, तुमको ही पूजा है मैंने
मेरी आशा और प्रेम में, मेरे और माँ के जीवन में
सदा रही जो और रहेगी, अमर स्वामिनी अपने घर की
उसी गृहात्मा की गोदी में, तुम्हीं पली हो युगों-युगों से
विकसित होती हृदय कली की, पंखुड़ियाँ जब खिल रहीं थीं
मंद सुगंध बनी सौरभ-सी, तुम ही तो चहुं ओर फिरी थीं
सूर्योदय की पूर्व छटा-सी, तब कोमलता ही तो थी वह
यौवन वेला तरुणांगों में, कमिलिनी-सी जो फूल रही थी
स्वर्ग प्रिये उषा सम जाते, जगजीवन सरिता संग बहती
तब जीवन नौका अब आकर, मेरे हृदय घाट पर रुकती
मुखकमल निहार रही तेरा, डूबती रहस्योदधि में मैं
निधि अमूल्य जगती की थी जो, हुई आज वह मेरी है
खो जाने के भय के कारण, कसकर छाती के पास रखूँ
किस चमत्कार से जग वैभव, बाँहों में आया यही कहूँ?
रविन्द्र नाथ टैगोर Ravindra Nath Taigor National Enthem Jan Gan Man
“जन गण मन” उनकी रचित एक विशिष्ट कविता है जिसके प्रथम छंद को हमारे राष्ट्रीय गान होने का गौरव प्राप्त है
जन गण मन को इसके अर्थ की वजह से राष्ट्रगान बनाया गया. परन्तु इसे लेकर काफी विवाद भी हुआ था, इसके कुछ अंशों का अर्थ होता है कि भारत के नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है. हे अधिनायक (सुपरहीरो) तुम्ही भारत के भाग्य विधाता हो. इसके साथ ही इसमें देश के अलग- अलग राज्यों का जिक्र भी किया गया था और उनकी खूबियों के बारे में बताया गया था.
विवादों में होने कारण यह बताया जाता रहा की रवीन्द्रनाथ टैगोर जी इस कविता को रानी विक्टोरिया के समक्ष गाये थे जिसमे बताते है रवीन्द्रनाथ जी इस कविता में रानी विक्टोरिया का गुणगान कर रहे है, बाद उनकी काफी आलोचना भी हुआ था, इस कारण रवीन्द्रनाथ जी अपनी सर की उपाधि लौटा भी दिए थे, इस विवाद को लेकर अपनी प्रतिक्रिया भी दिए की लोग जैसा मान रहे है वैसा कुछ नहीं नहीं है.
पूरा जन गण मन के पांचो पद :- Full Jan Gan Man
जनगणमन-अधिनायक जय हे भारतभाग्यविधाता!
पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छलजलधितरंग
तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मागे,
गाहे तव जयगाथा।
जनगणमंगलदायक जय हे भारतभाग्यविधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।
अहरह तव आह्वान प्रचारित, शुनि तव उदार बाणी
हिन्दु बौद्ध शिख जैन पारसिक मुसलमान खृष्टानी
पूरब पश्चिम आसे तव सिंहासन-पाशे
प्रेमहार हय गाँथा।
जनगण-ऐक्य-विधायक जय हे भारतभाग्यविधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।
पतन-अभ्युदय-वन्धुर पन्था, युग युग धावित यात्री।
हे चिरसारथि, तव रथचक्रे मुखरित पथ दिनरात्रि।
दारुण विप्लव-माझे तव शंखध्वनि बाजे
संकटदुःखत्राता।
जनगणपथपरिचायक जय हे भारतभाग्यविधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।
घोरतिमिरघन निविड़ निशीथे पीड़ित मूर्छित देशे
जाग्रत छिल तव अविचल मंगल नतनयने अनिमेषे।
दुःस्वप्ने आतंके रक्षा करिले अंके
स्नेहमयी तुमि माता।
जनगणदुःखत्रायक जय हे भारतभाग्यविधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।
रात्रि प्रभातिल, उदिल रविच्छवि पूर्व-उदयगिरिभाले –
गाहे विहंगम, पुण्य समीरण नवजीवनरस ढाले।
तव करुणारुणरागे निद्रित भारत जागे
तव चरणे नत माथा।
जय जय जय हे जय राजेश्वर भारतभाग्यविधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।
इन पांच पदों में से शुरुवात के एक पद को राष्ट्रगान के रूप में मान्यता मिली है.
राष्ट्रगान जन मन गन पर अधिक जानकारी के लिए click here
Jana Gana Man Ravindranath Tagore’s Voice
बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बाँग्ला’ उनकी ही रचनाएँ हैं।: रविन्द्र नाथ टैगोर Ravindra Nath Taigor
National Enthem Jan Gan Man
আমার সোনার বাংলা
আমি তোমায় ভালবাসিচিরদিন তোমার আকাশ
চিরদিন তোমার আকাশ
তোমার বাতাস আমার প্রাণে
ও মা
আমার প্রাণে বাজায় বাঁশি
সোনার বাংলা
আমি তোমায় ভালবাসিও মা
ফাগুনে তোর আমের বনে
ঘ্রাণে পাগল করে
মরি হায়, হায় রে
ও মা
ফাগুনে তোর আমের বনে
ঘ্রাণে পাগল করে
ও মা
অঘ্রানে তোর ভরা খেতে
কি দেখেছি
আমি কী দেখেছি মধুর হাসি
সোনার বাংলা
আমি তোমায় ভালবাসিকী শোভা, কী ছায়া গো
কী স্নেহ, কী মায়া গো
কী আঁচল বিছায়েছ
বটের মূলে
নদীর কূলে কূলে
কী শোভা, কী ছায়া গো
কী স্নেহ, কী মায়া গো
কী আঁচল বিছায়েছ
বটের মূলে
নদীর কূলে কূলেমা তোর মুখের বাণী
আমার কানে লাগে
সুধার মতো
মরি হায়, হায় রে
মা তোর মুখের বাণী
আমার কানে লাগে
সুধার মতোমা তোর বদন খানি মলিন হলে
আমি নয়ন
ও মা আমি নয়ন জলে ভাসি
সোনার বাংলা
আমি তোমায় ভালবাসিআমার সোনার বাংলা
আমি তোমায় ভালবাসিচিরদিন তোমার আকাশ
চিরদিন তোমার আকাশ
তোমার বাতাস আমার প্রাণে
ও মা
আমার প্রাণে বাজায় বাঁশি
সোনার বাংলা
আমি তোমায় ভালবাসি
Amar sonar Bangla
Ami tomay bhalôbasi
Chirôdin tomar akash,
Tomar batas,
Amar prane bajay bãshi.
O ma
Phagune tor amer bône
Ghrane pagôl kôre,
Môri hay, hay re,
O ma,
Oghrane tor bhôra khete
Ami ki dekhechhi môdhur hasi.
Ki shobha, ki chhaya go,
Ki snehô, ki maya go,
Ki ãchôl bichhayechhô
Bôter mule,
Nôdir kule kule.
Ma, tor mukher bani
Amar kane lage
Sudhar môto-
Ma tor bôdôn khani môlin hôle
ami nôyôn
o may ami nôyôn jôle bhasi
sonar Bangla,
ami tomay bhalôbasi!
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National Anthem of Bangladesh: रविन्द्र नाथ टैगोर Ravindra Nath Taigor
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