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Ro Liye Tum Bin | रो लिए तुम बिन | Dr Kumar Vishwas | KV Studio
Koi Deewana Kehta Hai
कुमार विश्वास जी कि कविता में से एक यह कविता “रो लिए तुम बिन | Ro Liye Tum Bin” भी बहुत प्रचलित है. जिसमे प्रेम में जब दुसरे को उसके प्यार का वास्ता दे कर बतलाना की हम भी उसी परेशानी से गुजर रहे है जिसमे तुम गुजर रहे हो.
इस कविता को गाने, गुण गुनाने के लिए Koi Deewana Kehta Hai कि धुन का इस्तेमाल करें कविता दिल तक जाएगी.
उसी की दी हुई दौलत उसी के नाम करता हूँ…😍 यादों की अलमारी से ये चंद प्रेमिल मुक्तक आप सबकी मुहब्बतों को सप्रेम समर्पित हैं। सुनिए और गुनगुनाइए… 😍❤️ : Kumar Vishwas
Kumar vishwas ki kavita | Dr Kumar Vishwas | KV Studio
कहीं पर जग लिए तुम बिन
कहीं पर सो लिए तुम बिन
मैं अपने गीत गजलों से उसे पैगाम करता हूं,
उसी की दी हुई दौलत, उसी के नाम करता हूं
हवा का काम है चलना, दिए का काम है जलना
वो अपना काम करती है, मैं अपना काम करता हूं
किसी के दिल की मायूसी जहाँ से हो के गुजरी हैं
हमारी सारी चालाकी वही पर खो के गुजरी हैं
तुम्हारी और मेरी रात में बस फर्क इतना हैं
तुम्हारी सो के गुजरी हैं , हमारी रो के गुजरी है
नज़र अक्सर शिकायत आजकल करती है दर्पण से ,
थकन भी चुटकियाँ लेने लगी है तन से और मन से ,
कहाँ तक हम संभाले उम्र का हर रोज़ गिरता घर ,
तुम अपनी याद का मलबा हटाओ दिल के आँगन से
कहीं पर जग लिए तुम बिन, कहीं पर सो लिए तुम बिन
भरी महफिल में भी अक्सर, अकेले हो लिए तुम बिन
ये पिछले चंद वर्षों की कमाई साथ है मेरे
कभी तो हंस लिए तुम बिन, कभी फिर रो लिए तुम बिन
जहाँ हर दिन सिसकना है जहाँ हर रात गाना है
हमारी ज़िन्दगी भी इक तवायफ़ का घराना है
बहुत मजबूर होकर गीत रोटी के लिखे मैंने
तुम्हारी याद का क्या है उसे तो रोज़ आना है
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है !
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है
Kahin par jag liye tum bin
Kahin par so liye tum bin
Main apne geet ghazalon se use paigaam karta hoon,
Usi ki di hui daulat, usi ke naam karata hoon
Hawa ka kaam hai chalna, diye ka kaam hai jalna
Wo apana kaam karati hai, main apana kaam karata hoon
Kisi ke dil ki maayoosi jahaan se ho ke gujari hain
Humaari saari chalaaki wahi par kho ke gujari hain
Tumhaari aur meri raat mein bas fark itna hain
Tumhaari so ke gujari hain , Hamaari ro ke gujari hai
Nazar aksar shikaayat aajkal karti hai darpan se ,
Thakan bhi chutkiyaan lene lagi hai tan se aur man se ,
Kahaan tak hum sambhaale umr ka har roz girta ghar ,
Tum apni yaad ka malba hataao dil ke aangan se
Kahin par jag liye tum bin, kahin par so liye tum bin
Bhari mehfil mein bhi aksar, akele ho liye tum bin
Ye pichhle chand varshon ki kamayi saath hai mere
Kabhi to hans liye tum bin, kabhi phir ro liye tum bin
Jaha har din siskana hai jaha har raat gaana hai
Humaari zindagi bhi ik tavaayaf ka gharaana hai
Bahut majboor hokar geet roti ke likhe maine
Tumhaari yaad ka kya hai use to roz aana hai
Koi deewaana kehta hai, koi paagal samajhta hai
Magar dharati ki bechaini ko bas baadal samajhta hai
Main tujhse door kaisa hoon, tu mujhse door kaisi hai
Ye tera dil samajhta hai, yaa mera dil samajhta hai
Written By:
Dr Kumar Vishwas | Kumar vishwas ki kavita