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mobile chhod maidan pakad मोबाइल छोड़ मैदान पकड़ Khel Mahotsav
इस Khel Mahotsav अभियान की शुरुवात तीन वर्ष पहले किये. जिसे हमने “मोबाइल छोड़ मैदान पकड़ ” नाम रखा. इसका मकसद बच्चों में मोबाइल के प्रति जो आकर्षण बना है उसे दूर कर खेल को उनके जीवन में महत्त्व देना. इससे वह बच्चा नाकि सिर्फ सेहत सुधार सके बल्कि वह अपना ध्यान शारीरिक जीवन के साथ साथ शैक्षिणक व सामाजिक जीवन भी सुधार सके.
Games, Sports and Our Life
आज मोबाइल ने मानो लोगो को खामोश ही कर दिया हो. सभी एक घर में एक कोना पकड़ कर अपने मोबाइल में लगे है. इस वैश्विक युग में लोग अपनों को ऐसे भी समय कहाँ दे पाते है. और मोबाइल ने उनमे और दुरी बना दी है.
मोबाइल का उपयोग कम करने के भी बहुत से फायदे है, जो हर व्यक्ति को समझना चाहिए। मैं नहीं कहता की मोबाइल का बिलकुल उपयोग बंद कर देना उसे इस्तेमाल करें, वह भी जरुरी है. आज के तकनिकी ज्ञान के लिए और खुद दुनिया के साथ साथ कदम रखने में मोबाइल और टेक्नोलॉजी जरुरी है. परन्तु इस कदर नहीं की दिनभर सुबह उठाने से लेकर रात सोने तक और खाना खाने से लेकर शौचालय में तक उपयोग करें. यह तो अति है.
मोबाइल और मैदान में यदि एक को चुनना होतो तो कोइ एक नहीं दोनों चुने अपर एक निश्चित समय के अनुसार. जिस तरह हर एक काम करने में एक समय तक की पाबन्दी होती है ठीक उसी तरह की पाबन्दी मोबाइल को इस्तेमाल करने की होनी चाहिए.
खेल के प्रकार Types of Games and Sports
एक इनडोर गेम्स Indoor Games and Our life
इनडोर गेम वह खेल जो हम घर में खेलते है. और यह खेल पुरातन काल से चला आ रहा है जिसमे शतरंज, लूडो, पासा जैसे खेल खेले जाते थे. पर वक्त बदलता गया अब इन खलों की जगह मोबाइल ने ले लिया है. इसमें भी ऐसे असंख्य खेल है जो बड़े स्तर पर खेलते है. ऐसा नहीं की शतरंज, लूडो, पासा जैसे खेल अब नहीं खेलते यह भी खेलते है इनकी जगह और भी ढेरों मन रोचक खेल है जो बच्चों से लेकर बड़े तक खेला करते है.
अब तो खेल के जरिये पैसे भी कमा सकते है खेल को जीतो और पैसे कमाओ ऐसे भी ढेरों खले है जिसमे रमी,एमपीएल,ड्रीम इलेवन, MPL, DREAM 11, Rummy, जैसे ढेरो खेल आये और लोग पैसे जीते भी और यही कारण है लोग गेम मोबाइल पर खलेते है ऐसा नहीं है मोबाइल के खेलो की इस आकर्षण के साथ बनाया जाता है जिसे सभी मोहित हो जाते है
Games in 2020
यदि ऐसे ही मोहित करने वाले २०२० के मोबाइल गेम्स की बात करें तो Pubg, कौन नहीं जनता इसके बारे में. ठीक इसी तरह Pokemon go, ludo, subway surfers, my tom cat, candy crush ऐसे कई खेल है. जिसे हर उम्र के लोग खेलते है. उन्हें मजा आता है, समय भी व्यतीत होता है.
परन्तु यह सभी मोबाइल या इनडोर गेम को खेलने का एक समय सीमा होता है. यह खेल वैसे समय में खेल सकते है जब हम बाहर जाने में सक्षम नहीं है जैसे रात के समय, दोपहर के कडकती धुप में हम ऐसे समय में इन खेलों का लुप्त उठाये तो कोइ समस्या नहीं. क्यूंकि शारीरिक शक्ति के साथ साथ मानसिक शक्ति का होना भी अत्यंत आवश्यक होता है.
Problem by Indoor Games
मैदान में खेले जाने वाले खेल शारीरिक व मानसिक तौर में मनुष्य को मजबूत करता है पर घरों में या मोबाइल में खेले जाने वाले खेल मानसिक तौर पर मजबूती शायद ही देती होगी क्यूंकि मोबाइल से निकलने वाले अल्ट्रा वोलेट किरणे शारीर को नुकसान पहुंचती है, आँखों कि रौशनी कम कर देती है. आँखों में जलन, आँखों का दुखना साथ ही साथ आखों के कारण सर भी दुखने लगता है. एक जगह बैठे रहने से पीठ कि रीढ़ कि हड्डी में तनाव उत्पन्न होता है जिसके कारण पीठ दर्द होता है. लगातार मोबाइल को देखते रहने से गर्दन में अकडन आ जाती है जिससे गर्दन भी दुखने लगता है.
और यह सभी कुल मिलाकर देखें तो मस्तिष्क का विकास कम और शारीर में तनाव अधिक पैदा कराती है. जिसके परिणाम लोगो को कम उम्र से ही झलने पड़ते है. मोबाइल गेम सबसे अधिक हमरे दिमाग व आँखों पर असर करता है जिसके कारण कम नींद आना , आँखों की समस्या, तनाव, कमर और गर्दन में दर्द, चिडचिडा पन जैसे बीमरी का शिकार हो जाते है. मोबाइल गेम खेलते समय एक जगह बैठे रहने से हमारे रीढ़ की हड्डी में तनाव से हमारे शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ता है. भूख कम लगता है. इससे से शरीर कमजोर और आलस के कारण बीमारियाँ पैदा हो जाती है.
एक है आउट डोर गेम्स Out door Games and our life
मैदान में खेले जाने वाले खेल – आउट डोर गेम.
मैदान में खेले जाने वाले खेल का नाम सुनते ही क्रिकेट, फूटबाल, कब्बडी जैसे खेलों के नाम सबसे पहले आ जाते है. पर ऐसा नहीं है कि मैदान या घर के बाहर सिर्फ हम यही खेल खेल सकते है बहुत से ऐसे खेल है जिसे मैदान में या घर के बाहर खुली हवा में खेल सकते है. जिसमे गुल्ली डंडा, पकड़ा पकड़ी, गोटी, भौरा, पतंग उडाना, आँख मिचौली जैसे खेलों को सामिल न करें तो बेमानी होगा.
शिवाजी महाराज अपने बचपन में गुल्ली डंडा, पकड़ा पकड़ी, गोटी, भौरा, पतंग उडाना, आँख मिचौली जैसे खेलों को खेल कर दिया बड़े हुए उस समय के काल में क्रिकेट, फुटबॉल जैसे खेल होते थे या नहीं यह नहीं पता पर यह तय है कि गुल्ली डंडा, पकड़ा पकड़ी, गोटी, भौरा, पतंग उडाना, आँख मिचौली जैसे खेल हुआ करते थे. और जिसका खेलने का अंदाज भी और उसके मजे भी शरीर के कोने कोने को जागृत कर देता है.
ऐसे तमाम खेल जो मैदानों में खुली हवा में खेले जाटे हो वह सभी शरीर के लिए बेहद जरुरी है. जब हम बाहर खेलते है तब उस समय हमारे शरीर में खेलने से सांसे ज्यादा से ज्यादा बार हम अंदर बाहर करते है मतलब कि शरीर का श्वच्छोच्वास अधिक होता है जिसके कारण रक्त में आक्सीजन कि मात्रा बढ़ जाती है. शरीर के अंग अंग को आक्सीजन मिलने लगता है और जो शरीर के लिए बेहद जरुरी माना जाता है. खेलने में दिमाग तो यहाँ लगाना ही पड़ता है और साथ साथ में शारीर के प्रत्येक अंग इसमें व्यस्त रहता है.
जिससे शरीर का एक अच्छा व्यायाम हो जाता है. और यदि सुबह के समय खेले तो यह व्याम और भी अधिक फायदे मंद होता है.
“खेल जीवन का अहम् हिस्सा है, मोबाइल गेम से बेहतर है मैदान में खेल जाने वाले खेल.”
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मैदान में खेल ने से शारीर का व्यायाम होता है और शारीर का स्वस्थ बना रहता है. खेलने से शारीर को शुद्ध आक्सीजन मिलता है और साँस की समस्या हृदय विकार नहीं होता है. शरीर का थकन दूर होता है. शरीर तरोताजा बना रहता है.
इतने तमाम फायदों के बावजूद बच्चे से लेकर जवान उम्र के लोग मैंदान में नहीं घर में ही खेलते है. यही कारण है अब छोटे छोटे बच्चों में आखों कि समस्या देखने को मिलाने लगा है. और वह बचपन से मोटी मोटी ग्लास वाले चश्मे लगाने लगते है. उन्हें कम नींद आती ऐसे तमाम बाते
एक शोध के अनुसार आने वाले समय में १० में से ४ बच्चे को यह तक मालुम नहीं होगा की मैदान खलेने के लिए होता है.
इसलिए आने वाली युवा पीढ़ी बीमार व कमजोर न रहे. वह हमारे पूर्वजों कि तरह बुढ़ापे में भी तंदुरुस्त रहे इसलिए इनडोर गेम्स को कम कर मैदान में खेले जाने वाले खेल हमें खेलना चाहिए.
मोबाइल या इनडोर गेम खेलें पर समय के अनुसार कुछ समय के लिए.
पर मैदान में खेले जाने वाले खेल कम खेले जाने के पीछे कुछ और भी कारण है जिसमे सबसे पहले माता पिता खासकर माँ. वह अपने घरेलु कामों को आसानी से कर सके जिसके लिए वह उन छोटे बच्चों को कार्टून, या मोबाइल दे देती है. बच्चे बाहर खेलने न जाये उसके लिए भी मोबाइल जैसे गेम्स को खेलने दे देते है.
बच्चों का भविष्य माता पिता और प्रशासन बिगाड़ रही है
जो उन बच्चों के लिए बहुत ही बुरा होता है वह मैदान नाम से अपरिचित रह जाते है. साथ साथ एक सर्वे के मुताबिक अब ऐसे बच्चे पोर्नोग्राफी के तरफ भी जाने लगे है कारण एक दम सामान्य है मोबाइल में इन्टरनेट होता ही है और उसमे कुछ भी type करने पर search रिजल्ट कभी उनके मन मुताबिक न आकर कुछ और ही आ जाता है जो एक गलत search के कारण आया होता है पर बच्चे अगर ऐसे चीजो के जल्दी ध्यान रख लेते है जो इस गला रस्ते पर चलने लगते है.
दूसरा कारण है प्रशासन और जनसँख्या जिसके कारण भी मैदान में खेले जाने वाले के खेलों को खेल्नेवालों कि संख्या कम होने लगे है. क्यूंकि अब मैदान ही ज्यादा नहीं बचे है हर जगह सड़क चौड़ी करने के लिए मैदानों को छोटा करना , इमारते बनाना, mall बनाना इन सब से जो मैदान बचे है उसमे भीड़ अधिक होने लगा है और भीड़ अधिक होने से सभी बच्चे खेल भी नहीं पाते है और चोट लगने के डर से वह मैदान में जाने से हिचकिचाते है.
इसलिए माता पिता के साथ साथ प्रशासन इस बात को समझे कि उनके ताकतवर, जो शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ युवा भारत चाहिए या अस्वस्थ युवा भारत!
अब रही बात हमारे “मोबाइल छोड़ मैदान पकड़” अभियान कि तो समझ में आ ही गया होगा इस अभियान को क्यों शुरू किये है. इस अभियान को शुरू करते समय हमें अपने मोहल्ले में भरी मसक्त करनी पड़ी. हुआ यह कि हमे सरकारी मैदान में बच्चों को खेलाने के लिए भी दुनिया भर के झंझटो में पड़ना पड़ा, मैदान पर मालिकाना हक़ ज़माने वाले पैसो कि मांग करने लगे
और मै चाहता था कि अपने पैसे और समय खर्च का बच्चों को तीन चार दिन खेल महोत्सव कि तरह विभिन्न खेल खेलूंगा जिससे वह घर से बाहर निकलकर मैदान के खेल कि ओर आकर्षित हो पर कुछ लोगों को और प्रशासन को यह मंजूर नहीं था. पर फिर भी इनकी बाधाओ के बावजूद बाद में हमारी टीम को पुलिस का साथ मिला और तब से यह खेल आस पास के सभी बच्चों को हर वर्ष एक त्यौहार कि तरह खेलाते है जिसे में 20 से 25 खेल होते है.
हमारी टीम को इस कार्य के लिए दैनिक भास्कर द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में माननीय सचिन तेंदुलकर द्वारा हमे सम्मानित भी किया गया.
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