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परिश्रम का महत्व हिंदी निबंध parishram ka mahttva hindi nibandh
जन्म और मृत्यु ईश्वर के बस में है लेकिन जन्म और मृत्यु के बीच मनुष्य के हाथों में केवल कर्म है और हर व्यक्ति को अपना कर्म करना चाहिए।
सिर्फ कर्म पर ही मनुष्य का नियंत्रण होता है, यही श्रीमद भगवत गीता का सार है। इस जगत में कोई भी कार्य स्वयं घटित नहीं होता बल्कि विज्ञान के नियम क्रिया और प्रतिक्रिया से जुड़ा होता है। हम जो अपने जीवन में जितना करते हैं उतना ही हमें मिलता है आपने तो सुना ही होगा Action Vs Reaction। परिश्रम भी मनुष्य की दिनचर्या का एक घटक है-जैसे कि भोजन करना, टहलना, सोना, नहाना, आदि।
मनुष्य एक बुद्धिमान प्राणी है। अतः मनुष्य अपने बुद्धि तथा परिश्रम से असंभव कार्य को संभव कर सकता है। बिना परिश्रम जीवन व्यर्थ है। प्रकृति संसाधनों से भरा पड़ा है लेकिन बिना परिश्रम इन संसाधनों का उपयोग नहीं कर सकता। वह इन संसाधनों का उपयोग कर अपने जीवन को खुशहाल समृद्ध बना सकता है। “कर्म ही पूजा है ।” वर्क इज वरशिप “Work is Worship” की बात हमारे शास्त्रों में कही गई है।
ईश्वर स्वयं यह मानते हैं कि वे मनुष्य के फूल माला आदि अगरबत्ती से प्रसन्न नहीं होते बल्कि मनुष्य के मेहनत के पसीने से उन्हें खुशी मिलती है। राम राम जपना पराया माल अपना क्या एक कामचोर और आलसी व्यक्ति की पहचान है। इस नीति से मनुष्य का भला नहीं हो सकता इसलिए मनुष्य के लिए सफलता का एक ही मंत्र है और वह है परिश्रम।
परिश्रम केवल मनुष्य ही करता है। ऐसा नहीं, बल्कि प्रकृति के भी सभी घटक को कुछ न कुछ दायित्व दिया गया है और सभी घटक अपने दायित्व को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। सूर्य देवता दिन भर कड़ी तपन सहकर दुनिया को प्रकाश देते हैं। पवन देवता 24 घंटे सातों दिन अपने प्राणवायु पवन से लोगों को जीवन दायिनी वायु देते हैं। चंद्रदेव रात्रि में शीतलता देते हैं। वरुण देव हमें जल देते हैं। नदियां लगातार प्रवाहित होकर लोगों को पीने तथा कृषि के लिए चल देते हैं। आवश्यकता अनुसार अपने दैनिक जीवन को पूर्ण करते हैं।
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जरा सोचिए यदि वे नियमित मेहनत ना करें तो क्या जीव सृष्टि क्या पृथ्वी पर रह सकता है? नहीं! यदि सोचो – सूर्य चंद्रमा कहे “1 दिन के लिए उन्हें आराम करना है, तो क्या होगा? कभी हमने कल्पना की है कि संसार के काल चक्र का क्या होगा? अतः यह तय है – मेहनत सभी को करना होता है। स्वयं के लिए, परिवार के लिए और समाज के लिए। जो दृढ़ संकल्प के साथ लगातार मेहनत करते हैं सफलता भी उन्हीं के चरण चूमती है।
किसी ने ठीक ही कहा है-
“संसार का खजाना कर्मों का जो करता है वह पाता है आलस्य बुरी है सब कहते हैं नर आखिर में पछताता है।
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कुछ लोग दुनिया में भाग्य के सहारे बैठे रहते हैं ऐसे लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि
भाग्य के सहारे रहने वालों को उतना ही मिलता है जितना उनके पिछले कर्मों से संचित हुआ है
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लेकिन जो कर्म में भरोसा रखते हैं और सतत अपना कर्म करते हैं उनकी भाग्य रेखाएं विधाता उसी से पूछ कर लिखते हैं। जो व्यक्ति कर्म नहीं करता और आलस्य से भरा जीवन जीता है वह हमेशा दूसरों पर आश्रित रहते हैं। हमेशा उनके मन में हीन भावना, ईर्ष्या, पराधीनता की बेड़ियों में बंधे रहना जैसे बुरे विचारों में जकड़े रहते हैं। और ऐसे लोगों का कभी भला नहीं होता है। यह लोग परिवार, समाज तथा देश पर बोझ होते हैं।
परिश्रम का यह अर्थ नहीं कि केवल काम करना, क्योंकि जिस परिश्रम का कोई उद्देश्य नहीं वह तो व्यर्थ है। उद्देश्य पूर्ण विकास हेतु जो काम होता है वही परिश्रम है। आतंकवादी नक्सली मेहनत करते हैं लेकिन इसे परिश्रम नहीं कह सकते। क्योंकि इनका उद्देश्य विध्वंसक है। हितकर नहीं, सिर्फ और सिर्फ अपने स्वार्थ को पूरा करना और सामान्य जन जीवन को तहस नहस करना होता है।
परिश्रम का परिणाम सकारात्मक ही होता है फिर चाहे उसका फल मिले या ना मिले क्योंकि कर्म ही मनुष्य के हाथ में है और फल विधाता के हाथों में। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन को यही उद्देश्य थे कि
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥
परिश्रम का महत्व हिंदी निबंध parishram ka mahttva hindi nibandh
अर्थात कर्म कर फल की आशा मत कर। यदि हम इतिहास के पन्ने उठा कर देखे तो सैकड़ों नाम जेहन में आता है जिन्होंने अपने अपनी लगन व मेहनत से अपना नाम और कीर्ति को एक अलग पहचान दी। अब्राहम लिंकन एक गरीब मजदूर परिवार में जन्म लिए लेकिन मेहनत के दम पर झोपड़ियों से निकलकर अमेरिका का राष्ट्रपति बनने तक का सफर तय किये इसी प्रकार छत्रपति शिवाजी महाराज, लाल बहादुर शास्त्री जी, डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन, सचिन तेंदुलकर, अमिताभ बच्चन, डॉ एपीजे अब्दुल कलाम जैसे अनेकों गरीब गरीबी की लक्ष्मण रेखा को अपने परिश्रम के बाण से काटा । इतिहास के पन्नों में ऐसे काम कर दिए कि युगो युगो तक याद किया जाएगा।
कर्म करने वाले व्यक्ति गंगा जल की तरह पवित्र होते हैं, उनमें किसी के प्रति कोई दुर्भावना नहीं होती। परिश्रम से पसीने बहाते हैं जिससे उनका शरीर स्वस्थ और रोग मुक्त हो जाता है। ऐसे व्यक्ति चरित्रवान, इमानदार, और स्वावलंबी होते हैं। इन्हीं के दम पर परिवार, समाज, राष्ट्र आत्मनिर्भर बनता है
एक अंग्रजी में कहावत है कि
There is no substitute for Hard work.
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