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aarakshan ek samsya ya samadhan hindi nibandh
आरक्षण एक समस्या या समाधान हिंदी में निबंध
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गरीबी या गरीबी में जीना अभिशाप है,
आरक्षण एक समस्या या समाधान हिंदी में निबंध – aarakshan ek samsya ya samadhan hindi nibandh
पर वहीँ st/sc/obc जाति में
पैदा होना एक वरदान से कम नहीं।
आरक्षण का अर्थ है चारों ओर से सुरक्षित रहना या फिर कह सकते हैं सुरक्षा प्रदान करना। ऐसा माना जाता है कि आजाद भारत से पहले भारत में सामाजिक असमानता थी वेद पुराणों में भी वर्ण व्यवस्था का चित्र देखने को मिलता है। लेकिन वक्त के साथ कुछ कट्टरपंथी और बुद्धिजीवी ने जातिवाद की दलदल को और गहरा कर दिया जिससे सामाजिक असमानता चरम पर पहुंच गई थी।
आरक्षण एक समस्या या समाधान- यह एक समाधान कम और वोट बैंक ज्यादा है, जिसे इस्तेमाल कर हर राजनितिक पार्टी अपने हित को साधने में लगा है।
डा. भीम राव बाबा साहेब आम्बेडकर जी ने जब संविधान बनाये और जातिगत आरक्षण का प्रावधान किया था तो, उसे उन्होंने करीब शुरुवात के करीब 10 से १५ वर्षो के अस्थायी तौर पर बनाया गया था। और समय समय पर जातिगत आरक्षण की समीक्षा होना अनिवार्य था। परन्तु ऐसा हो न सका। आरक्षण जातिगत न होकर आर्थिक होना चाहिए। समय बितता गया पर अब तक आजादी के 75 वर्ष होने आ गए फिर भी आरक्षण कम या ख़त्म होने के बजाय और भी या बढ़ता ही जा रहा है। इसके पीछे का एक मात्र कारण है राजनितिक पार्टियाँ जो यह जान गए है।
आरक्षण यह एक ऐसा ब्रह्मात्र है जिसके जरिये वोट हासिल किया जा सकता है। और जिसके बल पर अपना राजनीतक समीकरण सुधार सके। यही कारण है सभी राजनितिक पार्टियाँ इस आरक्षण को हटाना नहीं चाहती। बजाय इसके और भी आरक्षण को बढ़ावा देने में लगी है, हाल फिल हाल में २०१९-2020 मराठा, जाट आन्दोलन इसके उदाहरण है।
सामाजिक असमानता की खाई को पाटने के लिए कई समाज सुधारको जैसे राजा राममोहन राय, महर्षि दयानंद सरस्वती, शाहू महाराज आदि ने क्रांति की मशाल जलाई, और आधुनिक भारत की नींव रखी। यहाँ तक की रामायण काल में भी इस जाति पंथ को दूर करने को लेकर राम ने सबरी के बेर खाए, केवट को बराबरी का दर्जा दिया गया।
लेकिन ब्रिटिश काल में शोषण की चरम सीमा पर पहुंचने के बाद एक बार फिर सामाजिक असमानता बढ़ने लगा और तब लॉर्ड मिंटो ने 1909 में पहली बार आरक्षण शब्द का प्रयोग किया था इसका उद्देश्य था भारत का पृथक प्रतिनिधित्व दिलाना आजाद भारत में सामाजिक समानता को बनाए रखने के लिए हमारे राजनेताओं ने संविधान में आरक्षण को मान्य किया
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 तथा 342 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण व्यवस्था की गई है संविधान की धारा 15 के अनुसार भारत में धर्म जाति वर्ण लिंग के आधार पर किसी भी व्यक्ति से भेदभाव नहीं किया जा सकता। 1951 में संविधान में संशोधन कर सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए संसद में कानून बना और काका कालेकर की अध्यक्षता में प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना की गई जिससे 2399 जातियों को पिछड़ा वर्ग और 837 जातियों को अति पिछड़ा बताया गया।
लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण इस आयोग के सुझावों को नजर अंदाज किया गया और आरक्षण को वोट बैंक के रूप में प्रयोग किया जाने लगा आरक्षण का मूल उद्देश्य पिछड़े वर्ग के लोगों को प्रगति करने के लिए अवसर प्रदान करना ताकि वह भी समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकें लेकिन देश में आरक्षण का प्रयोग सत्ता पाने के लिए हथियार के रूप में होने लगा।
अब आरक्षण का दुरुपयोग हद से ज्यादा होने लगा है समाज के पिछड़े वर्ग को सामाजिक स्तर पर मजबूत करने और शैक्षणिक अवसर देने से उनकी आर्थिक प्रगति को बल मिल सकता है और यही आरक्षण का मूल उद्देश्य है। और अवसरवादी राजनीति में आरक्षण की मूल भावना की हत्या कर दी है आज जिस व्यक्ति की नेताओं तक पहुंच है उसे आरक्षण का लाभ मिल रहा है। और जो सक्षम है और जिन को आरक्षण मिलना चाहिए वह आजादी के 70 वर्ष बाद भी यथास्थिति वैसे ही बने हुए हैं।
पिछले कुछ वर्षों में हमने कुछ ऐसे ही आंदोलन आरक्षण को लेकर देखा मराठा आंदोलन, पटेल आंदोलन, गुर्जर आंदोलन और अनेकों हिंसात्मक आंदोलन। देश में मराठा, पटेल, गुज्जर एक सशक्त समाज है लेकिन वोट बैंक के खातिर इन्हें भी आरक्षण की आग में धकेला जा रहा है आज हालात ऐसे हो गए हैं कि कुछ राज्यों में 100% तो कुछ राज्य में 75% सरकारी नौकरियां आरक्षित कर दी गई हैं।
आरक्षण की आड़ में और अयोग्य को योग्यता पर तरजीह दी जा रही है परिणाम यह हो रहा है कि स्वास्थ्य, शिक्षा तथा सरकारी कामकाज की गुणवत्ता दिनों दिन गिरता जा रहा है और यह इसलिए हो रहा है कि आरक्षण के कारण अयोग्य व्यक्ति भी इन पदों पर नियुक्त हो गया है यही कारण है कि पिछले 70 वर्षों में हमारे पास संसाधन होते हुए भी अपेक्षा अनुसार हमारी आर्थिक प्रगति नहीं हुई है इसका एकमात्र कारण है कि आरक्षण में लिप्त भ्रष्टाचार।
योग्य व्यक्ति जो सामान्य वर्ग या अगले वर्ग में आते हैं उन्हें सीमित अवसर दी जाती है प्रणाम स्वरुप अगड़ा वर्ग के योग्य और कुशल व्यक्ति भारत से लगातार पलायन होकर विदेशों में सेवा दे देने को मजबूर हैं। आज अमेरिका, दुबई, ब्रिटेन, कनाडा के आर्थिक विकास में 40% ज्यादा योगदान भारत से पलायन लोगों का है। अमेरिका की एक एजेंसी नासा में हर 10 वैज्ञानिकों में से 7-8 वैज्ञानिक भारतीय मूल के हैं। जरा सोचिए यदि यह वैज्ञानिक अपनी सेवा भारत में देते तो भारत का आर्थिक विकास की रफ्तार क्या होती है? आप यह दिए गए कुछ नामों पर विचार कर सकते है- aarakshan ek samsya ya samadhan hindi nibandh
गूगल के सुंदर पिचाई Sundar Pichai – CEO, Google LLC & Alphabet INC, माइक्रोसॉफ्ट के सत्य नदेला Satya Nadella – CEO, Microsoft, शांतनु नारायण – अडोब इंक Shantanu Narayen – CEO, Adobe Inc, अजयपाल सिंह बंगा मास्टर कार्ड, Ajaypal Singh Banga – CEO, Mastercard, राजीव सूरी नोकिया Rajeev Suri – CEO, Nokia Inc. जैसे लोग इसके उदारहरण है.
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मैं यह नहीं कहता की ए सभी आरक्षण के कारण बाहरी देशो में अपने सेवाएं दे रहे है, पर यह जरुर है की ए भारत की व्यवस्था से तो जरुर आहत है। लेकिन आरक्षण के दंश ने उन्हें भारत में अवसर नहीं दिया और वह भारत छोड़ने को मजबूर हो गए इसी प्रकार सामान्य वर्ग के योग्य और कुशल व्यक्ति पर आरक्षण की मार पड़ी है योग्य होने पर भी आज तक अवसर से वंचित हैं परिणाम यह हुआ कि अधिकांश कुशल और योग्य युवा रोजगार की तलाश में गांव से शहरों की ओर पलायन करने लगे हैं
मैं यह नहीं कहता की ए सभी आरक्षण के कारण बाहरी देशो में अपने सेवाएं दे रहे है, पर यह जरुर है की ए भारत की व्यवस्था से तो जरुर आहत है। लेकिन आरक्षण के दंश ने उन्हें भारत में अवसर नहीं दिया और वह भारत छोड़ने को मजबूर हो गए इसी प्रकार सामान्य वर्ग के योग्य और कुशल व्यक्ति पर आरक्षण की मार पड़ी है योग्य होने पर भी आज तक अवसर से वंचित हैं परिणाम यह हुआ कि अधिकांश कुशल और योग्य युवा रोजगार की तलाश में गांव से शहरों की ओर पलायन करने लगे हैं। देखते ही देखते गांव विरान होने लगे गांव में कुशल मजदूरों की कमी हो गई और गांव आर्थिक बदहाली के जंजाल में फंस गया।
कहते हैं कि गांव भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं यह बात 2020 में आया यह प्रलयंकारी कोरोना की बीमारी और उसपर यह lockdown के बाद सिर्फ किसान की खेती ही भारतीय अर्थ व्यवस्था का बोझ उठाई. कहते है न डूबते को तिनके का सहारा यह भारत की कृषि ने इस महामारी में किया। लेकिन यह डूबती जा रही है वहीं दूसरी ओर रोजगार की तलाश में युवा शहरों में बसने लगे हैं लेकिन अवसर कम और प्रतिस्पर्धा अधिक होने के कारण योग्य युवकों को भी निम्न स्तर का काम कम वेतन पर करना पड़ रहा है, जिसे भारत की स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग निम्न स्तर का हो गया है।
आरक्षण की समीक्षा होना जरूरी है यह जरूरी नहीं कि 70 वर्ष पहले जो अमीर था वह आज भी वह अमीर हो और जो 70 वर्ष पहले गरीब और वंचित था वह आज भी गरीब हो. मैं आरक्षण के खिलाफ नहीं हूं मैं भी चाहता हूं कि वंचित समाज को विशेष अवसर मिले ताकि वह भी मुख्यधारा में आ सके परन्तु आरक्षण आर्थिक आधार पर हो ताकि उन्हें भी अच्छी शिक्षा तथा सुविधा का लाभ मिल सके. यह जरूरी नहीं कि अगड़ी जाति वाले आर्थिक तंगी में नहीं है।
अतः आरक्षण जाति के आधार पर नहीं आर्थिक आधार पर हो तभी भारत सशक्त और प्रगतिशील बन सकता है और हमारे पिछड़े वर्ग के लोग भी सिर्फ वोट बैंक बनकर न रहें बल्कि वह भी सशक्त और आत्मनिर्भर बनें और हर भारतीय एक दुसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर भारत देश को एक विकसित और समृद्ध राष्ट्र बना सके।
2020 में भारत सरकार इस तरह के कदम उठाई है जिसमे सवर्णों को आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण की बात कही गयी है. जिसमे यह दिए गए ग्राफिक में देख सकते है।
यह कदम भारत सरकार गरीबो को ध्यान में रखे तो गरीबों के पक्ष में है पर मै इसमें भी पर! जैसे शब्द का उपयोग करूँगा क्युकी इसे भारत की कुल आबादी पर लागु करने किसी सर दर्द से कम नहीं है और उसके बाद भारत का बढ़ता भ्रष्टाचार जो अपने आप में प्रश्न चिन्ह है।
इस आरक्षण का लाभ निम्नलिखित बातो पर ही लोगो को मिलेगा.: aarakshan ek samsya ya samadhan hindi nibandh
- घर की वार्षिक कमाई 8 लाख से कम हो.
- 5 एकड़ से कम जमीन होना.
- खुद के घर का क्षेत्रफल 1000sqft से कम होना चाहिए
- घर बनाने के लिए यही कोई जगह ले रखे हो तो वह 100 यार्ड से कम होना चाहिए.
- २०० यार्ड से कम घर बनाने की अन्य कोई जगह.
अब समस्या यह है की सरकार के आकड़ों के अनुसार ९५% मतलब की करीब १२७ करोड़ लोग की वार्षिक कमाई 8 लाख से कम है, और ८६% लोगो के खेत 5 एकड़ से कम है. 80% लोगो के घर ५००sqft से कम है, तो बात यही है की सुविधा का लाभ सभी को कैसे मिल पायेगा.
पर कुछ भी हो शुरुवात ठीक है और आगे भी सरकार को इस विषय पर सोचना जरुरी है. तब जाकर हम गरीब और विकाशील भारत से अमीर, सु दृढ भारत को देख पाएंगे.
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