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Ek paras Patthar Ki Kahani एक पारस पत्थर
ek paras patthar aur garib majdur
एक पारस पत्थर Ek paras Patthar Ki Kahani
एक पारस पत्थर ki kahani hindi me
एक मजदुर था जो बड़ा ही इमानदार था. वह अपने काम को बड़े ही ईमानदारी से किया करता था. एक बार जब वह गरीब मजदूर अपने घर पर सो रहा था। तभी कोई ज्ञानी बाबा पानी से व्याकुल उस मजदूर के घर आकर उस से पानी मागने लगा। उस मजदूर ने बड़े विनम्र भाव से उस बाबा की सेवा की। वह बाबा उसकी सेवाभावना से बहुत प्रसन्न हुआ।
उस बाबा ने उस मजदूर को एक पारस पत्थर दिया। और कहा की इस पत्थर से स्पर्शे कर ने पर कोई भी लोहे की वस्तू सोना हो जाएगी। और उस बाबा ने कहा की मैं इस पत्थर को परसो सुबह आ कर ले जाऊगा।
बाबा की बातो को सुनकर मजदूर के ख़ुशी का ठिकाना नही रहा। और बाबा वहा से चला गया। वो मजदूर उस पत्थर को पाकर खुशी से सो गया। और वो शाम को उठा। वह सोचने लगा जब सोना बनाना ही है तो क्यूँ न बहुत से लोहे खरीद कर उसे सोना बनाकर अमीर बन जाऊं. उसने कल सुबह लोहे की खरीदारी करने का निश्चय किया। वह खुश इतना था कि रात को मीठे मीठे पकवान बनाया और उस खाकर सो गया।
कल सुबह प्रातः काल में उठ कर लोहे की खरीदारी कर ने को बाजार चला गया। लोहे वाले की दुकान पर जाकर लोहे का तोलभाव कर ने लगा . लोहे की कीमत से संतुष्ट न हो कर वह वहा से चला गया। और सोचने लगा पारस पत्थर तो मेरे पास ही है उससे कभी भी सोना बना लूँगा. और घर आते उसने बहुत -सी वस्तुओ की खरीदारी कर ली। और इस सब में शाम हो गया ।
पुरे दिन में खरदारी कर ने वह बहुत थक गया. और घर आकर सो गया। और सोचा की सुबह जल्दी उठकर लोहे की खरीदारी कर ने चल जाउगा। किन्तु वह सुबह दर तक सोया रहा। और बाबा आगये। उसके दरवाजे को खटखटाने लगे. मजदूर हड़बड़ी में उठा और बाबा से प्रार्थना करने लगा।
उनसे कुछ समय और देने के लिए उनके सामने गिड़गिड़ाने लगा। पर बाबा ने उसकी एक न मानी और उससे वह पारसी पत्थर लेकर चला गया। मजदूर ने अपनी घर के दरवाजे की कुंजी तक को भी सोना नहीं का पाया। और वह पूरा दिन खूब रोया।
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एक पारस पत्थर Ek paras Patthar Ki Kahani lalachka fal kahani hindi mein
सीख: लालच में व्यक्ति इस कदर घिर जाता है कि उसे छोटे छोटे फायदे न देख बड़ा फायदे के बारे में सोचने लगता है जिसमें आकर वह अपना कुछ भी फायदा नहीं कर पता. इसलिए अधिक लालच बुरी बात होती है.
Ek paras Patthar Ki Kahani एक पारस पत्थर
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us baaba ne us majadoor ko ek paaras patthar diya. aur kaha kee is patthar se sparshe kar ne par koee bhee lohe kee vastoo sona ho jaegee. aur us baaba ne kaha kee main is patthar ko paraso subah aa kar le jaooga.
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pure din mein kharaad kar usane bahut thak gaee. aur ghar aakar so gaya. aur socha kee subah jaldee uthakar lohe kee khareedaaree karane ja raha hoon. lekin vah subah tak paas raha. aur baaba aagaye. usake daravaaje ko khatakhataane lage. majadoor hadabadee mein utha aur baaba se praarthana karane laga.
unhen kuchh samay aur dene ke lie unake saamane gidagidaane laga. par baaba ne apanee ek na maanee aur usake baad vah paarasee patthar lekar chala gaya. majadoor ne apane ghar ke daravaaje kee chaabee tak ko bhee sona nahin ka paaya. aur vah poora din ro roya.
Ek paras Patthar Ki Kahani एक पारस पत्थर
seekh: laalach mein vyakti is kadar ghir jaata hai ki use chhote chhote phaayade na dekh bade phaayade ke baare mein sochane lagata hai jisamen aakar vah apana bhee bahut phaayada nahin kar pata. isalie adhik laalach vaalee baat hotee hai.
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