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Impact of movies on society essays Aaj Ke Filme Aur Samaj
आज के फ़िल्में और समाज Aaj Ke Filme Aur Samaj
आज टेलीविजन लगभग हर घर में आत्यावश्यक वस्तु की सूचि में आने लगा है. वैसे तो अब यह इन्टरनेट का युग है जिसमे मोबाइल और उसमे भी सोशल मीडिया का जमाना आ गया है. पर ऐसा नहीं है की टेलीविजन ने अपनी जगह खो दी है. आज भी टेलीविजन घर में हक्क जमाये हुए है. यहाँ तक की वह तो मानो एक परिवार का सदस्य बन चूका है. और लोग इसका इस्तेमाल भरपूर अपना समय व्यतीत करने में इस्तेमाल करते है. और तो और अब इन्टरनेट के माध्यम से मोबाइल पर ही टेलीविजन के चैनलों को देखते है.
दुनिया में आये हर एक आविष्कार अपने साथ ढेरो अच्छाई लेकर आया तो कहीं न कहीं उसी के साथ अपनी कमियों को ले आया जो दुनिया के सामने समय दर समय आता रहा है. जिसमे यदि संगणक – कंप्यूटर की बात करें तो विश्व के विकास में अहम भूमिका निभाती है तो वहीँ एक पक्ष बेरोजगारी को इसका बड़ा कारण बताता फिरता है. ठंडी ठंडी हवा देने वाला AC, फ्रिज जहाँ हमें शीतल पेय और हमारे भोजन को ताजा रखता है तो वहीँ ग्रीन हॉउस और कार्बन और कार्बनडाई आक्साइड को बढाने में सहायक है. जो प्रकृति के लिए बहुत बड़ा नुकसान है.
टेलीविजन के फायदे – Advantages of Television
ठीक उसी तरह टेलीविजन भी एक तरफ मनोरंजन से दिल बहलाता है, देश विदेशों के समाचारों को पल भर में हमारे सामने प्रस्तुत करता है, बच्चों के लिए कार्टून, पढ़ाई लिखाई के कार्यक्रम दिखाता है. साथ साथ ही टेलीविजन के आने से लोग जागरूक होने लगे. तरह तरह के कार्यक्रम ने समाज के खामियों और कमियों को दिखाया जिसे देख लोगो में जागरूकता आया और लोगो की सोच बदली।
भारतीय युवा और जिम्मेदारी हिंदी निबंध hindi nibandh
जहाँ एक तरफ टेलीविजन से लोग जागरूक हुए तो कहीं न कहीं लोगो में इसमें दिखाए गए दृश्य, कहनियाँ, फिल्मे क्राइम को बढ़ावा भी दिया. समय समय पर टेलीविजन में दिखाई जाने वाली दृश्य पर से रोक टोक कम हुआ जो अब जो चाहे सो दिखाने की कोशिश करते रहते है. जिसका बच्चों पर, समाज पर बुरा प्रभाव भी देखने को मिल रहा है.
टेलीविजन का महत्त्व
फिल्म या फिल्म का महत्व
फिल्में और युवा
• भारत सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त, 15-35 आयु वर्ग के सभी युवा माने जाते हैं।
• विशेष रूप से हिंदी फिल्में आज किशोरी के जीवन में एक बड़ी भूमिका निभाती हैं।
• फिल्मों पर चर्चा दैनिक ‘गपशप’ का एक बड़ा हिस्सा है और फिल्म सितारों के वास्तविक जीवन में एक बड़ी हद तक विस्तारित होती है।
• जब यह फैशन, रोमांस और भाषा आती है। बॉलीवुड फिल्में युवाओं के लिए एक निरंतर संदर्भ बिंदु हैं।
• गैंगस्टर फिल्में कॉलेज के छात्रों के साथ विशेष रूप से लोकप्रिय हैं।
• इन फिल्मों के संवाद नियमित रूप से दोस्तों के साथ बातचीत में उपयोग किए जाते हैं।
• जब सही कपड़े और प्रतीकों के साथ जोड़ा जाता है- मोटरबाइक, सिगरेट, लड़कियों / लड़कों, मोबाइल फोन आदि यह उन्हें अपनेपन का एहसास देता है।
• फिल्में वैसे माध्यम हैं, जो किशोरों को नए विचारों के साथ प्रस्तुत किए जाते हैं- ड्रेस कोड, व्यवहार या दृष्टिकोण के संदर्भ में। ये अक्सर युवाओं द्वारा अपने दैनिक मित्रों और परिचितों के साथ बातचीत में उपयोग किया जाता है।
• फिल्मों ने रोमांस के लिए तड़प पैदा की है।
• “प्रेमी” या “प्रेमिका” को टैग किया जाना तात्पर्य लोकप्रियता, ठंडक और आधुनिकता से है।
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फिल्मे जो आज मानो लोगो के समय व्यतीत करने का एक उत्त्तम साधन बन चूका है. और यह संभव इसलिए भी हुआ की क्यूंकि आज विज्ञान और तकनीक के मदद से कुछ ही महीनो में बेहतर से बेहतर फिल्म बन जाती है. एक समय था जब फिल्मो को बनाने में वर्षो लग जाते थे. आज हर सप्ताह नए नए फिल्मो के भरमार लगा रहता है. और यही कारण है लोग अपना मनोरंजन और समय व्यतीत करने के लिए फिल्मो का सहारा लेते है.
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वैसे यह सही बात भी है २ से ३ घंटे फिल्मे देखते देखते कैसे बीत जाते है इस बात का आभास भी नहीं होता और मनोरंजन भी ठीक ठाक हो जाता है. फिल्मो को तैयार करने में सैकड़ो लोगो की मदद ली जाती है तरह की कहनिया, बातों को कलाकार अपने कला से फिल्मों में उतरता है. और उनकी कलाएं लोगो को खूब पसंद आती है.
एक समय था जब हम फिल्मो को समाज का आईना कहते थे. समाज में जो भी घटनाये होती थी फिल्मे उसे बड़ी ही सरलता से दिखता और समाज के सामने उसमे निहित दोष और गुणों को अपने रुपहले परदे पर दिखाती है समाज को उसे समझने और जानने में भी कोई कठिनाई नहीं होती थी. परन्तु
टेलीविजन के नुकसान – Disadvantages of Television
आज ठीक उसके विपरीत हो चला है. अब फिल्मो को समाज का आईना नहीं बल्कि समाज को फिल्मो का आईना कहें तो कोई गलत बात नहीं होगा. इस बात को समझने के लिए पहले समझाना होगा की समाज क्या है?
समाज का अर्थ है वह परिसर जहाँ पर्यावरण का हर एक तत्त्व निहित होता है.
जिसमें विशेष मनुष्य जाति को माना जाता है समाज के व्यवहार को जानने से पहले समाज संरचना को जाना उतना ही आवश्यक है. माना जाता है पहले मनुष्य जानवरों की भांति जंगलों में अलग अलग रहता था धीरे-धीरे समाज में बदलाव आता गया और उनके आवश्यकताओ ने उन्हें करीब लाया उनके सर्वप्रथम और एकमात्र आवश्यकता थी भोजन. भोजन के लिए शिकार करते थे. पेट भर खाने के लिए अधिक भोजन की आवश्यकता होती थी उसके लिए बड़े शिकार करने होते हैं बस फिर क्या था की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पहले झुंड बनाकर रहने लगे वही धीरे धीरे उनका एक बड़ा समूह बनने लगा.
आवश्यकता थी अब स्थाई रूप से रहने की, जिसके कारण वह नदियों के किनारे रहने लगे. खेती पद्धति को विकसित किया. और धीरे धीरे खेती ने उन्हें एक जगह स्थाई बना दिया. यही उनका स्थाईपन ने एक कस्बा गांव, समाज का निर्माण में सहायक बना समाज में सभी लोगों के कामकाज और आजीविका को ध्यान में रख कर सभी के कामों को बांट दिया गया जिससे लोहार बढ़ई, जैसे तरह-तरह के कार्य अस्तित्व में लाया गया. समाज में समय-समय पर परिवर्तन होता रहा. इस तरह उनकी आवश्यकता पहले भोजन, कपडा, फिर मकान से उनकी मुलभुत आवश्यकता को पूरा करते करते आज के अपने शौक, अपनी चाह को पूरा करने में लगा रहा, और फिल्मे भी उनकी अपनी चाह में सामिल हो गया.
आज के आधुनिक युग में इस बदलाव में फ़िल्में अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं।
1925 के राजा हरिश्चंद्र के मूक फिल्म के बाद से फिल्मों में लोगों की रुचि बढ़ी और उस मूक फिल्म से रुपहले रंग के सिनेमा फिल्मों से आज रंगीन फिल्मों ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया. फिल्मों में कलाकारों की कला के साथ-साथ फिल्मों की कहानियों में भी बड़ा बदलाव आने लगा है जो आज के समय को और अलग रंग दे रही है. इसमें कहना मुझे कोई गुरेज नहीं होगा कि आज फिल्मों से समाज की सोच पहचान और उनके बारे में भी बड़ा बदलाव देखने को मिलता है 90 के दशक में भारत की मानें तो दो से तीन फिल्में ही बनाने में साल लग जाते थे और वहीँ आज सैंकड़ो फिल्मों का अम्बार सिनेमाघरों में लगी रहती है
भारत में फिल्म उद्योग का संक्षिप्त इतिहास
भारतीय सिनेमा का जन्म
• भारतीय सिनेमा का जन्म 3 मई, 1913 को हुआ था।
• 1913 से। भारतीय सिनेमा, जिसे लोकप्रिय रूप से बॉलीवुड के रूप में जाना जाता है, ने सरल मूक फिल्मों से लेकर साउंड फिल्मों तक, फिर रंगीन फिल्मों से लेकर वर्तमान समय की तकनीकी रूप से उन्नत फिल्मों तक का लंबा सफर तय किया है।
बॉलीवुड के बारे में रोचक तथ्य
• उत्पादन के लिहाज से, बॉलीवुड दुनिया की सबसे बड़ी फिल्म उद्योग है जिसमें हर साल 1000 से अधिक फिल्मों का निर्माण होता है।
• इसकी फिल्मों को हर दिन लगभग 14 मिलियन भारतीय देखते हैं।
• दादा साहब फाल्के द्वारा राजा हरिश्चंद्र (1913) भारत में बनी पहली मूक फीचर फिल्म थी।
• आलम आरा ’- पहली भारतीय साउंड फिल्म 1931 में रिलीज़ हुई थी।
• किसान कन्या (1937) भारत में निर्मित पहली रंगीन फिल्म थी।
• हर साल, बॉलीवुड फिल्में 6 से कम पुरस्कार समारोह में मनाई जाती हैं
बॉलीवुड की विकास
• यह 1930 के दशक तक था और इस उद्योग ने हर साल 200 से अधिक फिल्मों का निर्माण शुरू किया।
• 1950 के दशक के उत्तरार्ध तक फिल्मों को रोमांटिक संगीत और संगीत के द्वारा परिभाषित किया गया था।
जिन फिल्में को सरकार द्वारा मान्य नहीं किया जाता उसे भी OTT प्लेटफार्म मतलब की ऑनलाइन सोशल मीडिया इंटरनेट के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया जाता है.
बीसवीं सदीके इस इंटरनेट के जमाने में आज केबल से लेकर संगणक टीवी तक का इस्तेमाल छोटे-छोटे बच्चे से लेकर बूढ़े तक कर रहे हैं और इसमें यह फिल्म सभी उम्र के लोगों पर एक सीधा प्रभाव छोड़ती है फिल्मों में दिखाई जाने वाली सामग्री बहुत हद तक अपने जीवन में उतारने की कोशिश करते हैं चाहे वह धारावाहिक या फिर छोटे बच्चों का कार्टून हो. एक सर्वे के मुताबिक कार्टून और घरेलू धारावाहिक बच्चों पर और औरतों पर उनके व्यवहार , बोलचाल पर सीधा प्रभाव डालती है बात यहां तक तो कुछ हद तक ठीक है.
परंतु इंटरनेट से लेकर टीवी विज्ञापनों तक बहुत अश्लील दृश्य, और बातों से पटा पड़ा है जो कहीं ना कहीं सभी वर्गों के लोगों तक पहुंच रहा है.
इन सब से बोले जाने वाले अश्लील भाषा, अश्लील दृश्य, धूम्रपान का सेवन जैसी चीजों को बिना रोक-टोक के दिखाया जाता है. यह समाज के छोटे बच्चों से लेकर बड़े वर्गों के लोगों पर असर डालती हैं. सिगरेट, शराब जैसी जानलेवा नशीली चीजों का सेवन का जीता जागता उदाहरण पंजाब है. इसे समय रहते रोक नहीं लगाई गई तो पूरा का पूरा समाज इसके चपेट में आ जाएगा. सोशल मीडिया और इंटरनेट पर अश्लील सामग्री का अधिक संख्या में होने से युवा वर्ग और छोटे-छोटे बच्चे भी इसे देख रहे है.
इन सबमें 12 से 15 वर्ष की उम्र के बच्चों पर बुरा प्रभाव देखने को मिला है इन सब भद्दी सामग्रियों से उन पर मानसिक स्तर पर उन्हें कमजोर कर रहा है. इसका हाल ही हुए एक राजस्थान की घटना देखने को मिला है. वैसे तो ऐसे अनगिनत घटनाये हो रही है जिसका संज्ञान किसी को नहीं है.
इसलिए हर इस तरह के सामग्री पर समय-समय पर रोक ना लगाया जाए तो उस समाज किस ओर जाएगा यह कल्पना मात्र है.
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देश को चाहिए की इस पर कानून लाये और ऐसे नियमों को बनाये जिससे वैसे हाल ही में इस पर कानून बनने की बात चली थी परन्तु यह अभी दूर के ढोल सुहाने होने वाली कहावतों की तरह है. वैसे तो मेरी राय यह की की —
एक अभिभावक, माता पिता ही इन सब पर अपनी पकड ठीक तरह से रख सकते है. वह अपनी निगरानी में बच्चों को मोबाइल फोन, टीवी को बच्चों को इस्तेमाल करने दें. समय समय पर अपने मोबाइल और टीवी की जांच करें की बच्चें कुछ और तो नहीं देख रहे है. कानूनन इन सब पर रोक लगाना संभव नहीं है, इसलिए माता पिता अपनी नयी जिम्मेदारी को समझे और बच्चों पर इन बातों का ध्यान दे.
फिल्मों को जानने से पहले फिल्मे और टेलीवीजन का इतिहास जानना जरुरी होगा.
History of Television
टीवी यानी टेलीविजन का अविष्कार किसने किया? – Who Invented Television
हर वर्ष 21 नवम्बर के दिन विश्व टेलीविजन दिवस मनाया जाता है। आज तक जितने भी अविष्कार हुए है उनमे से लगभग बहुत से अविष्कार उसके पहले के आविष्कार में बदलाव करके नए आविष्कार किये गए है. और टेलीविजन भी उन्ही में से एक है. वैसे तो टेलीविजन का आविष्कार “जॉन लोगी बेयर्ड – John Logie Baird” को माना जाता है. जो पहली बार १९२४ के करीब बना. परन्तु समय दर समय इनमे बदलाव हुआ और अलग अलग वैज्ञानिकों ने कैमरा से टेलीविजन और टेलीविजन से hd Tv जैसे आविष्कारक तरह तरह के उपकरणों से किये है.
लगभग १९४० तक आते आते दुनिया ने पहला टेलीवीजन देखा जिसे फुल इलेक्ट्रोनिक टीवी “टेलीक्रोम” नाम दिया गया. जिनमे ब्लैक एंड वाइट से लेकर कलर टीवी और CRT (कैथोड रे टयूब) से लेकर रिमोट वाली टीवी, lcd, led, और प्लाज्मा टीवी, और उनमे भी स्मार्ट टीवी जैसे टेलीविजन आज दुनिया के सामने है.
History of indian television – भारत में टेलीविजन
भारत में टेलीविजन का विकास बहुत ही धीमे गति से हुआ यह लगभग १९९० के दशक में भारत में आया. और यह दशक भी ब्लैक एंड हाइट जैसे टेलीविजन का ही था. वैसे तो भारत में १९८२ में ही कलर टीवी का आगमन हो चूका था. लेकिन लोगो के घर तक जाने में समय लगा और इसकी विक्री १९९० के बाद ही बढ़ा.
भारत का पहला टेलीविजन चैनेल दूरदर्शन था जिसकी स्थापना दिल्ली में 15 सितंबर 1959 को हुआ. पहले दूरदर्शन को “टेलीविजन इंडिया” के नाम से जाना जाता था. १९७५ में यह नाम बदलकर दूरदर्शन रखा गया.
दूरदर्शन के इतिहास में रामायण और महाभारत की लोकप्रियता देखने वालो की इतनी थी की बताया जाता है जब इसका प्रसारण होता था तो सड़कों पर सन्नाटा छा जाता था. लोग प्रसारण से पहले घर साफ कर और अगरबत्ती जलाकर टेलीविजन के सामने बैठ जाते थे और प्रसारण ख़त्म होने पर प्रसाद भी बाँटते थे.
1975 तक दूरदर्शन भारत के 7 शहरों तक ही था. १९८२ के बाद भारत में टेलीवीजन का प्रचलन बढ़ा और दूरदर्शन पर एशियाई खेल प्रसारण, और तरह के के कार्यक्रमों से टेलिविज़न की लोकप्रियता बढ़ने लगा.
भारत का पहला मनोरंजन निजी चैनेल जी टीवी 1 अक्टूबर 1992 को स्थापित हुआ. जिसके अनगिनत नेशनल, इंटरनेशनल और लोकल चैनल है. वहीं भारत का सबसे पुराना सरकारी टीवी चैनल डीडी न्यूज है।
युवाओं को फिल्में देखना और चर्चा करना बहुत पसंद है। सिनेमैटोग्राफी संगीत या शौक की तरह ही उनके जीवन का अभिन्न अंग है। फिल्म देखना या तो आपके जीवन को बेहतर बना सकता है, उसे बर्बाद कर सकता है, या तटस्थ या कोई प्रभाव नहीं डाल सकता है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि एक अच्छी फिल्म को हमेशा एक मजबूत छाप छोड़नी चाहिए। हालाँकि, समस्या यह है कि इस धारणा के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों परिणाम हो सकते हैं।
एनिमेशन, नाटक, कॉमेडी, डरावनी, कपोल कल्पित, कार्य
इन शैलियों में से प्रत्येक का युवाओं पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव पड़ सकता है। लेकिन, इस बात पर कोई सार्वभौमिक राय नहीं है कि फिल्में देखने के अधिक पक्ष या विपक्ष हैं। जबकि कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि हिंसक फिल्में लोगों को आक्रामक और खतरनाक बनाती हैं, अन्य सर्वेक्षण छात्रों को विशिष्ट फिल्में दिखाने के लाभों पर प्रकाश डालते हैं।
इस पोस्ट में, हम विशेष रूप से सबसे लोकप्रिय शैलियों के आधार पर समाज और युवा किशोरों पर फिल्मों के संभावित प्रभाव के बारे में बात करेंगे।
फिल्में देखने में कैसे फायदेमंद हो सकते हैं इसका उदाहरण
हिंसा में कमी
आजकल फिल्मों की सबसे पसंदीदा शैली नाटक है। युवा कुछ अफवाहों, साजिशों, हिंसा, रिश्तों, धमकाने आदि के बारे में फिल्मों को पसंद करते हैं। कई चरित्र उनके रोल मॉडल बन जाते हैं, जिसका अर्थ है कि बच्चे उनके कार्यों और व्यवहारों की नकल करना शुरू कर देते हैं। चूंकि किशोर फिल्मों में अधिकांश नायक एक अच्छा इंसान होने के लिए आवश्यक सभी आवश्यक गुणों के अधिकारी होते हैं, इसलिए यह बुरी प्रवृत्ति नहीं है।
फिल्में युवाओं को अच्छे और बुरे के बीच का अंतर देखने में मदद करती हैं। कई फिल्में सही निर्णय लेने और स्वतंत्र रूप से सोचने में मदद कर सकती हैं।
लेकिन, मूल्यवान जीवन के सबक प्रदान करने के लिए एक फिल्म को सकारात्मक विषयों को शामिल नहीं करना चाहिए। स्कूल की बदमाशी और आत्महत्या के बारे में फिल्में शुरू में इस तरह के व्यवहार के दुष्परिणाम दिखाती हैं। कई छात्र साझा करते हैं कि वे कम आक्रामक हो जाते हैं और इसका मतलब है कि ऐसी फिल्म देखने का मौका है कि वे कैसे दिखते हैं, खुद को दूसरे लोगों के जूते में डालते हैं, और अपने कार्यों के परिणामों का विश्लेषण करते हैं। यह दिलचस्प है, लेकिन हिंसा के बारे में फिल्में वास्तव में भेदभाव, घृणा अपराधों, स्कूल की धमकियों आदि को कम कर सकती हैं।
शिक्षा का महत्व
जो छात्र स्कूल छोड़ते हैं या कक्षाएं छोड़ते हैं, उनके पास शिक्षा के बारे में कई आधुनिक फिल्मों में ऐसे कार्यों के परिणाम देखने का अवसर है। फिल्मों में ज्यादातर मनहूस या बेरोजगार लोगों की शैक्षिक पृष्ठभूमि अच्छी नहीं होती है।
युवा अपने माता-पिता, रिश्तेदारों या दोस्तों से ज्यादा टीवी पर जो कहते हैं, उसे सुनने का मन करता है। फिल्म निर्माताओं के पास युवा आबादी के दिमाग को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त शक्ति है। और, शिक्षा के महत्व पर जोर देने वाली फिल्में देखने से, किशोर सीखने के सही मूल्य का एहसास करने लगते हैं।
बेतरतीब रूढ़ियाँ
कुछ विशेषज्ञ कह सकते हैं कि युवाओं पर फिल्मों का नकारात्मक प्रभाव बच्चों के रिश्तों को समझने का तरीका है। ज्यादातर मामलों में, हॉलीवुड केवल नेत्रहीन लोगों को अपने पात्रों को चित्रित करने की अपील करता है, और वे बिना मेकअप के कलाकारों को शायद ही कभी दिखाते हैं। फिल्मों में छात्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले ज्यादातर अभिनेताओं और अभिनेत्रियों के शरीर और चेहरे बिल्कुल समीप होते हैं। यही कारण है कि लड़का-अगला-दरवाजा उसे आज तक शांत नहीं है। लड़कियां अधिक यथार्थवादी अपेक्षाओं के बजाय क्रिस हेम्सवर्थ या ज़ैक एफ्रॉन जैसे लड़कों को डेट करना चाहती हैं।
लेकिन, उसी समय, फिल्में लड़कों और लड़कियों को अपनी उपस्थिति का ख्याल रखने के लिए प्रेरित करती हैं। एक युवा महिला को अच्छे आकार में देखकर लड़कियों को जिम में भाग लेने और स्वस्थ भोजन खाने के लिए प्रेरित करता है। आपकी मूर्ति की तरह दिखने की कोशिश करना गलत नहीं है जब तक कि वह मूर्ति एक सामूहिक हत्या या चोर न हो।
गहन सोच
भले ही यह स्पष्ट लग सकता है, फिल्में शिक्षकों को महत्वपूर्ण कौशल का मूल्यांकन करने और विकसित करने में मदद करती हैं जो छात्रों को फिल्म समीक्षा लिखने के लिए उन्हें सौंपने से होनी चाहिए। बेशक, आप हमेशा किसी को अपना होमवर्क करने के लिए पा सकते हैं लेकिन हम आपको कम से कम कई फिल्म समीक्षा लिखने का अभ्यास करने की सलाह देते हैं स्वयं के बल पर। यह गतिविधि चीजों को सारांशित करने और गंभीर रूप से मुद्दों का विश्लेषण करने की क्षमता को प्रशिक्षित करती है।
कई फिल्मों में मूल्यवान जीवन के सबक हैं। उदाहरण के लिए, विज्ञान फाई फिल्में भी युवा दर्शकों को शिक्षित कर सकती हैं। यह समझना आसान है कि जब आप उन्हें कल्पना कर सकते हैं तो विभिन्न चीजें कैसे काम करती हैं, और दृश्य के माध्यम से, छात्र याद करते हैं कि उन्हें क्या सीखना चाहिए। इसीलिए अगर आपको किसी वैज्ञानिक विषय को समझने में कठिनाई होती है, तो आप एक ऐसी फिल्म चुन सकते हैं जो इस मुद्दे को स्पष्ट या स्पष्ट रूप से बताए।
सारांश
फ़िल्में कितनी सहायक हो सकती हैं, इसके कई उदाहरण देखने के बाद, लाभों की एक सूची बनाएं। सामाजिक व्यवहार पर फिल्मों के सकारात्मक प्रभाव इस प्रकार हैं:
फिल्में मनोरंजन का एक उत्कृष्ट स्रोत हैं। वे जीवन में कुछ मसाला जोड़ते हैं और सही एंटीडिप्रेसेंट हैं: यदि आप खराब मूड होने पर सही फिल्म चुनते हैं, तो यह आपके दिन को बचा सकता है!
फिल्में और मीडिया लोगों को एकजुट करती हैं। विशेषज्ञों ने साबित किया कि जो लोग सामाजिक चिंता से पीड़ित हैं और दूसरों के साथ एक आम भाषा खोजना मुश्किल है, वे फिल्में देखने के माध्यम से इस तरह की बाधाओं को दूर कर सकते हैं। एक फिल्म हमेशा एक अच्छा ओ होती है
आजकल फिल्में लोगों के दिमाग पर बहुत प्रभाव छोड़ती हैं। युवाओं पर सिनेमा का प्रभाव आसानी से देखा जा सकता है। इसका असर न केवल ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बुजुर्गों पर बल्कि बच्चों पर भी देखा जा सकता है। यह नहीं कहा जा सकता कि सभी फिल्में युवाओं को भ्रष्ट कर रही हैं। “छिछोरे” जैसी फ़िल्में हैं, जो एक विद्यार्थियों के जीवन पर आधारित फ़िल्म थी और इससे हमें बहुत कुछ सीखने को मिला। वर्तमान फ़िल्में एक्शन, थ्रिलर, रोमांस, डकैती आदि से भरा होता हैं। युवा हर उस चीज़ की नकल करने की कोशिश करते हैं जो फिल्मों में होती है और यह दर्शाता है।
उनकी ड्रेसिंग स्टाइल, उनकी ड्राइविंग, उनके बात करने के तरीके आदि से लोग उन फिल्मों की कहानी के आधार पर खुद की कल्पना करने लगते हैं। लड़कियों और लड़कों, विशेष रूप से 15-25 की उम्र में, सबसे आसान शिकार यह युवा होते हैं। संवाद, अभिनेता की ड्रेसिंग शैली युवाओं के लिए नवीनतम प्रवृत्ति बन जाती है। वे उन सभी चीजों की नकल करने की कोशिश करते हैं जो फिल्मों में होती हैं और बिना यह समझे कि इसका कुछ हिस्सा उन पर नकारात्मक प्रभाव छोड़ सकता है।
जाने-अनजाने में फिल्में आज के युवाओं को एक तरह से ढालती हैं या युवाओं पर सिनेमा के दूसरे और प्रभाव को व्यापक रूप से देखा जा सकता है। यहां तक कि ग्रामीण क्षेत्रों में युवा फिल्मों से इतने प्रभावित हैं, कि वे फिल्म के नायकों को अपने मन के बहुत एकीकृत हिस्से में रखते हैं। वे फिल्मों के अनुसार अपनी जीवन शैली को बदलने की कोशिश करते हैं, केश, कपड़े, संवाद आदि से शुरू करते हैं।
युवाओं पर सिनेमा का प्रभाव
यहां तक कि जिन विज्ञापनों या विज्ञापनों को हम कहते हैं, वे भी कम नहीं हैं। इसकी मानवीय प्रकृति है कि हम ज्यादातर उसी का अनुसरण करते हैं जिसकी हम सबसे अधिक सराहना करते हैं। ऐसे विज्ञापन हैं जो अभिनेत्रियों और अभिनेताओं को इस तरह से एक उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए लाते हैं जो युवाओं को कुछ बुरे दौर में ले जा सकते हैं। आज फिल्मों में जब दैनिक अपराध, हत्याएं, डकैतियां दिखाई जाती हैं तो कुछ लोग इसे अंजाम तक ले जाते हैं
गलत तरीका और वे जानबूझकर ऐसे अपराध करना सीखते हैं। वे फिल्मों में अपराधों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले गुर और रणनीति सीखते हैं।
कई फिल्मों में, स्टंट किए जा रहे हैं, किशोर अपनी बाइक और कारों पर ऐसे स्टंट को कॉपी करने की कोशिश करते हैं, जो कई बार गंभीर दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं। अब भी लगभग सभी फिल्मों में गालियाँ इतनी आम हैं कि 10 साल का बच्चा भी जानबूझकर या अनजाने में ऐसी अपमानजनक भाषा बोल सकता है। आज फिल्मों में दिखाई जाने वाली स्वतंत्र और पश्चिमी संस्कृति के कारण उत्पीड़न और बलात्कार बढ़ गए हैं।
दूसरी ओर, “रंग दे बसंती” जैसी फिल्में हैं, जो एक अद्भुत फिल्म है और “नायक” जैसी फिल्में इस देश के राजनेताओं के लिए आदर्श सबक हैं। लेकिन यह केवल फिल्मों में ही सीमित है जबकि वास्तविक जीवन में, भ्रष्टाचार दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। ऐसी पारिवारिक फ़िल्में हैं, जो युवाओं को इतनी अच्छी नैतिकताएँ देती हैं, लेकिन लोग बस उन्हें देखते हैं, कुछ समय के लिए प्रभावित हो जाते हैं और फ़िल्म के खत्म होते ही नैतिक को भूल जाते हैं।
आशुतोष गोवारिकर, संजय लीला भंसाली जैसे फिल्म निर्माताओं को सलाम क्योंकि वे अपनी फिल्म में अश्लील दृश्यों का उपयोग कभी नहीं करते हैं ताकि यह बॉक्स ऑफिस पर काम कर सके और बहुत से व्यवसाय कमा सके। अश्लीलता के इस्तेमाल पर कुछ प्रतिबंध लगाए जाएं या दिखावा किया जाए ताकि हर फिल्म को “FAMILY FILM” या “U / A” के रूप में रेट किया जाए और “B-GRADE” फिल्म या “ADULT” फिल्म के रूप में रेट न किया जाए।
इसके अलावा विदेशी फिल्मों की स्क्रीनिंग और सिनेमा हॉल में वृद्धि प्रतियोगिता को गति प्रदान करेगी और स्थानीय उत्पादकों को बेहतर फिल्में बनाने के लिए प्रोत्साहित करेगी और इसलिए यह ऐसे प्रदर्शन को बढ़ावा देगा जो अंततः आज के किशोरों और यहां तक कि छोटे बच्चों को भी प्रभावित करेगा।
लेकिन अंततः इसका “हम” या व्यक्ति, जिस पर सब कुछ निर्भर करता है। सब कुछ एक व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह फिल्मों से क्या हासिल करता है। हमें फिल्मों का आनंद लेना चाहिए और अच्छी चीजों को सीखना चाहिए और बुरी चीजों को प्रभावित नहीं करने देना चाहिए। “युवाओं पर सिनेमा का प्रभाव” पर विचार किया जाना एक विचार है। इसलिए, इस बात से सावधान रहें कि आप क्या देखते हैं और आपको क्या हासिल होता है।
एक पारंपरिक भारतीय समाज में जहाँ विवाह की व्यवस्था एक सख्त आदर्श थी, फिल्मों ने किसी भी तरह से पुरुष-महिला के रिश्ते को एक अलग दृष्टिकोण दिया। हालांकि कभी-कभी अतिरंजित होने के बावजूद, “रोमांस सिखाने” में फिल्मों की भूमिका को पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। आज, मल्टी-स्क्रीन मॉल कल्चर वाले छोटे शहरों से शहरों की ओर जैसे-जैसे व्यवसाय आगे बढ़ रहा है,
भारतीय फिल्मों ने किसान केंद्रित पृष्ठभूमि से लेकर अमीर बंगलों तक अपनी प्रोफाइल बदल दी है। यह अति सुंदर स्थानों, कारों या निकायों को दिखाते हुए समाज को प्रभावित करना जारी रखता है जो उस युवा के लिए एक प्रेरणा बने हुए हैं जो अमीर बनना चाहता है और सामाजिक केशिकात्व की प्रक्रिया में अन्य की तुलना में तेजी से भाग रहा है।
फिल्म ‘राजा हरीश चंद्र’ (1913) के साथ अपनी शुरुआत के बाद से, सिनेमा भारत में बड़े पैमाने पर संचार के लिए सबसे शक्तिशाली मीडिया बना हुआ है। सिनेमा विचारों के संचार के साथ मनोरंजन को संयोजित करने की क्षमता रखता है। यह अपने दर्शकों के लिए संभावित अपील है। यह निश्चित रूप से ऐसी अपील करने में अन्य मीडिया को बहुत पीछे छोड़ देता है।
जैसा कि साहित्य में, सिनेमा ने बहुत उत्पादन किया है जो आदमी की अंतरतम परतों को छूता है। यह एपिसोड को इस तरह से चित्रित करता है जो आने वाली पीढ़ियों पर प्रभाव छोड़ता है। सिनेमा उस समाज की एक छवि प्रस्तुत करता है जिसमें वह पैदा होता है और किसी भी सामाजिक व्यवस्था में मौजूद आशाएँ, आकांक्षाएँ, निराशा और विरोधाभास।
वर्तमान युग में, सिनेमा को छोटे परदे की प्रस्तुतियों द्वारा प्रतिस्थापित किया जा रहा है। टीवी पर प्रसारित होने वाले धारावाहिकों और कार्यक्रमों का क्रेज बदल रहा है। वे विज्ञापन करते हैं और उद्योग के लिए राजस्व कमाते हैं। इस प्रकार फिल्म टेलीकास्ट उद्योग और व्यापार के लिए आगे की आय का एक स्रोत बन गया है। सिनेमा पर अच्छे विषय देखने के लिए हमेशा अच्छा और तैयार होता है। उनके दिमाग पर बहुत सकारात्मक और लंबे समय तक चलने वाला प्रभाव है जबकि सस्ती और जर्जर फिल्में दर्शकों के कोमल दिमाग को बहुत बुरी तरह प्रभावित करती हैं।
आम धारणा है कि वर्तमान में सभी अपराध सिनेमा के प्रभाव के कारण हैं। खुले और प्रदर्शनकारी विषयों के अलावा कलंकित संदेशों को फेंक देते हैं। वे हमारी संस्कृति, और समाज को खराब करते हैं। सिनेमा और टीवी युवाओं के स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। वे इस मनोरंजन पर अधिक समय बिताने के लिए अध्ययन और शारीरिक खेलों की उपेक्षा करते हैं। स्कूल जाने वाले बच्चे और समाज के बच्चे अच्छे प्रभावों का उपयोग करने में विफल होते हैं और हवा पर कार्यक्रमों के बुरे हिस्से से प्रभावित होते हैं।
सिनेमा लोगों के दिमाग पर बहुत प्रभाव डालता है। इसका एक महान शिक्षाप्रद मूल्य है। यह शिक्षा के विस्तार के क्षेत्र में शानदार परिणाम प्राप्त कर सकता है। कुछ विषय हैं, जैसे विज्ञान और भूगोल, जिन्हें टॉकीज़ की मदद से अधिक प्रभावी ढंग से पढ़ाया जा सकता है। सड़क समझ पर पाठ, स्वच्छता के नियम और नागरिक समझ को छात्रों और as जनता के साथ-साथ सिनेमा चित्रों की मदद से बहुत प्रभावी तरीके से पढ़ाया जा सकता है। शिक्षा के साधन के रूप में फिल्मों की उपयोगिता पर विभिन्न देशों में कई सफल प्रयोग किए गए हैं। स्कूल और कॉलेज के छात्रों के लिए फीचर फिल्मों का निर्माण किया गया है और छात्र उनसे लाभान्वित हो रहे हैं।
सिनेमा फिल्मों में लोगों की सोच को प्रभावित करने की ताकत है। उन्होंने समाज और सामाजिक प्रवृत्तियों को बदल दिया है। उन्होंने समाज में नए फैशन शुरू किए हैं। उन्हें गति-निवारक के रूप में वर्णित किया जा सकता है। वे हमारे सामाजिक जीवन पर सीधा प्रभाव पैदा कर सकते हैं। फ़िल्में राष्ट्रीय चेतना को जगाने की दिशा में एक लंबा रास्ता तय कर सकती हैं और साथ ही सामाजिक नैतिक पुनर्निर्माण और राष्ट्र-निर्माण में युवाओं की ऊर्जा का उपयोग अच्छे नैतिक, सामाजिक और शिक्षाप्रद प्रसंगों के कुशल अनुकूलन द्वारा और लोकप्रिय भावनाओं का परिचय देकर फ़िल्मों का निर्माण कर सकती हैं। बहुत हद तक, जनमत तैयार करना और मार्गदर्शन करना
नए लोगों से मिलने और पुराने दोस्तों के साथ रिश्ते सुधारने के लिए occasion।
फिल्में हमें अभिनय के लिए प्रेरित करती हैं। हमारे पसंदीदा नायक हमें मूल्यवान जीवन का पाठ पढ़ाते हैं। वे हमें विचारों और प्रेरणा देने के लिए बस बैठने के बजाय कुछ बेहतर करने के लिए और चीजों को अपने रास्ते जाने के लिए इंतजार करने के लिए प्रेरित करते हैं। प्रसिद्ध लोगों के बारे में फिल्में सामाजिक व्यवहार को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने का सबसे अच्छा तरीका है।
फिल्में ज्ञान का स्रोत हैं। वे यह जानने में मदद कर सकते हैं कि क्या चलन में है, प्राचीन समय के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करें या ज्ञान में कुछ अंतराल भरें।
अंत में, एक किताब पढ़ने के बजाय एक फिल्म देखने से बहुत समय बचता है। हालांकि पुस्तकों से सभी विवरणों को फिट करना असंभव है, फिल्मों में आमतौर पर 80-90% भूखंड होते हैं। पढ़ने के लिए बहुत कम समय के लिए पर्याप्त नहीं है।
भले ही फिल्में उपयोगी हो सकती हैं, लेकिन लोगों को उनमें से बहुत से देखने के संभावित प्रतिकूल प्रभावों को अनदेखा नहीं करना चाहिए। सिक्के के हमेशा दो पहलू होते हैं – इसे याद रखें!
Impact of movies on society essays
अंत में छोटी मगर एक बार सोचने वाली बातें… articles on movies and society
- यदि छोटे छोटे कपडे आज के समय फैशन, पैशन है, अंग प्रदर्शन करना मौलिक अधिकार है, तो बताये जब समाज रचना हो रही थी तो शारीर ढकने के लिए मनुष्य कपड़ो का उपयोग क्यों करने लगा?
देशवासियों कभी महिलाससक्तिकर्ण की आड़ में, तो कभी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, तो कभी अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर,
जो खेल अपनी ऐयाशियों के लिए भारत में स्टार्ट किये हैं वो आज एक सामाजिक जहर बन खड़े हुए हैं आओ देखें समस्या कहां है कुछ समझने की कोशिश करें,
बलात्कार अचानक इस देश मे क्यों बढ़ गए ? articles on movies and society
कुछ उदाहरणों से समझते हैं impact of movies on youth
【1】 लोग कहते हैं की #रेप क्यों होता है ?
एक 8 साल का लडका सिनेमाघर मे राजा हरिशचन्द्र फिल्म देखने गया और फिल्म से प्रेरित होकर उसने सत्य का मार्ग चुना वो बडा होकर महान व्यक्तित्व से जाना गया । परन्तु
आज 8 साल का लडका #टीवी पर क्या देखता है ? Impact of movies on society essays
सिर्फ #नंगापन और #अश्लील वीडियो #फोटो ,मैग्जीन में अर्धनग्न फोटो,पडोस मे रहने वाली भाभी के सूखते छोटे कपडे,
निठल्ले कुछ बेशर्म लोग कहते हैं कि रेप का कारण बच्चों की #मानसिकता है, पर वो मानसिकता आई कहाँ से ?
उसके जिम्मेदार कहीं न कहीं हम खुद जिम्मेदार है क्योंकि हम #joint family नहीं रखते ?
हम अकेले रहना पसंद करते हैं और अपना परिवार चलाने के लिये माता पिता को बच्चों को अकेला छोड़कर काम पर जाना है तो बच्चे अपना अकेलापन दूर करने के लिये #टीवी और #इन्टरनेट का सहारा लेते हैं ।
और उनको देखने के लिए क्या मिलता है सिर्फ वही #अश्लील# #वीडियो और #फोटो तो वो क्या सीखेंगे यही सब कुछ ना ?
अगर वही बच्चा अकेला न रहकर अपने दादा दादी के साथ रहे तो कुछ अच्छे संस्कार सीखने को मिलेंगे देखा जाय तो,
कुछ हद तक ये भी जिम्मेदार हैं ?
【2】 आज पूरा देश रेप पर उबल रहा है, impact of movies on youth
छोटी छोटी बच्चियो से जो दरिंदगी हो रही उस पर सबके मन मे गुस्सा है, कोई सरकार को कोस रहा है, तो कोई समाज को, तो कई Feminist सारे लड़कों को बलात्कारी घोषित कर चुकी है ?
लेकिन आप सुबह से रात तक
कई बार Sunny Leon के कंडोम के Add देखते है ..!!
फिर दूसरे Add में रणवीर सिंह शैम्पू के ऐड में लड़की पटाने के तरीके बताता है ..!!
ऐसे ही Close Up, लिम्का, Thumsup भी दिखाता है #लेकिनतबआपकोगुस्सानही_आता, है ना ?
आप अपने छोटे बच्चों के साथ Music चैनल पर मजे से सुनते हैं
दारू बदनाम कर दी,
कुंडी मत खड़काओ राजा,
मुन्नी बदनाम हुई,
चिकनी चमेली,
झण्डू बाम,
तेरे साथ करूँगा गन्दी बात, और न जाने ऐसी कितनी मूवीज गाने देखते सुनते है…!!
तब आपको गुस्सा नहीं आता ? Impact of movies on society essays
मम्मी बच्चों के साथ Star Plus, जी TV, सोनी TV, मजे के साथ देखती है, जिसमें एक्टर और एक्ट्रेस अजीव सी फीलिंग और चुम्बनों के साथ खुलियाम सुहाग रात मनाते है,चुम्बन करते है,आँखो में आँखे डालते है,परिवार में फूट कैसे डाली जाए ट्रेनिगं सिखाते है,और तो और भाभीजी घर पर है,जीजाजी छत पर है,टप्पू के पापा और बबीता जिसमें एक व्यक्ति दूसरे की पत्नी के पीछे घूमता लार टपकाता नजर आएगा,
पूरे परिवार के साथ मजे से देखते हैं,
इनसब serial को देखकर आपको गुस्सा नही आता ना ?
फिल्म्स आती हैं जिसमैं किस (चुम्बन,आलिंगन),रोमांस से लेकर गंदी कॉमेडी आदि सब कुछ दिखाया जाता है
पर आप बड़े मजे लेकर देखते है
इनसब serial को देखकर आपको गुस्सा नही आता ना ?
खुलेआम TV- फिल्म वाले अपनी कमाई के लिए आपके बच्चों को बलात्कारी बनाते है,उनके कोमल मन में धीमा जहर घोलते है
इनसब serial को देखकर आपको गुस्सा नही आता ना ?
(1)क्योंकि आपको लगता है की रेप रोकना सरकार की जिम्मेदारी है ?
(2)पुलिस प्रशासन,न्यायव्यवस्था की जिम्मेदारी है ?
(3)लेकिन क्या समाज,मीडिया की कोई जिम्मेदारी नही ?
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में, महिलाससक्तिकर्ण की आड़ में,
फिल्म बोर्ड,प्रसार मंत्रालय आपको कुछ भी परोस देंगे और आप अपनी आंखें और मुँह बंद करे बैठे रहेंगे क्या ?
आप तो अखबार पढ़कर, News देखकर बस गुस्सा निकालेंगे,
कोसेंगे सिस्टम को,सरकार को,पुलिस को,प्रशासन को , DP बदल लेंगे,सोशल मीडिया पे खूब हल्ला मचाएंगे, बहुत ज्यादा हुआ तो कैंडल मार्च या धरना कर लेंगे लेकिन….
TV, चैनल्स, वालीवुड, मीडिया को कुछ नहीं कहेंगे क्योंकि वो आपके मनोरंजन के लिए है ना ?
सच जानें तो TV Channels अशलीलता परोस रहे है,
पाखंड परोस रहे है,झूंठे विज्ञापन परोस रहे है,
झूंठे और सत्य से परे ज्योतिषी पाखंड से भरी कहानियां एवं मंत्र,ताबीज आदि परोस रहै है,
उनकी भी गलती नहीं है, कयोंकि आप खरीददार जो हो इस लिए वो अपना व्योपार परोस रहे हैं ?
बाबा बंगाली,तांत्रिक बाबा,स्त्री वशीकरण के जाल में खुद फंसते हो ?
【3】अभी टीवी का खबरिया चैनल मंदसौर के गैंगरेप की घटना पर समाचार चला रहा है ।
जैसे ही ब्रेक आये :
पहला विज्ञापन बोडी स्प्रे का जिसमे लड़की आसमान से गिरती है,
दूसरा कंडोम का,
तीसरा नेहा स्वाहा-स्नेहा स्वाहा वाला,
और चौथा प्रेगनेंसी चेक करने वाले मशीन का,
और पांचवां गर्भ निरोधक टैबलेट (अनवांटेट-72) का,
जब हर विज्ञापन, हर फिल्म में नारी को केवल भोग की वस्तु समझा जाएगा तो बलात्कार के ऐसे मामलों को बढ़ावा मिलना निश्चित है जी,
क्योंकि
“हादसा एक दम नहीं होता,
वक्क्त करता है परवरिश बरसों….!”
ऐसी निंदनीय घटनाओं के पीछे निश्चित तौर पर भी नंगपन,बाजारवाद ही ज़िम्मेदार है ?
【4】 आज सोशल मीडिया इंटरनेट और फिल्मों में पोर्न परोसा जा रहा है तो जैसी शिक्छा वैसा विकास तो बच्चे तो बलात्कारी ही बनेंगे ना ?
ध्यान रहे समाज और मीडिया को बदले बिना ये आपके कठोर सख्त कानून कितने ही बना लीजिए,
ये घटनाएं कभी नहीं रुकने वाली है ?
इंतजार कीजिये रोज आपको केंडल मार्च निकालने का अवसर हमारा स्वछंद समाज,बाजारू मीडिया और गंदगी से भरा सोशल मीडिया देने वाला है ?
अगर अब भी आप बदलने की शुरुआत नहीं करते हैं तो समझिए कि ……
फिर कोई और भारत की बेटी
निर्भया
गीता
दिव्या
संस्कृति
की तरह बर्बाद होने वाली है
🙏#भारतीय_संस्कृति भारतीय #सभ्यता का विनाश ना होने पाए युवाओं को एकमत,एकत्रित होकर अय्यास चंद बुढ्ढों से देश की आबरू बचानी है तो इसे सिर्फ युवा ही बचा सकता है 🙏
कई सर्वेक्षणों और साक्षात्कारों के अनुसार, आज की सबसे लोकप्रिय फ़िल्में हैं: Impact of movies on society essays
3 Idiots.
यदि इसकी आमिर की फिल्म है तो यह आवश्यक संदेश के साथ ठंडा है। आमिर खान आमिर खान को उनकी सामाजिक गतिविधियों के लिए जाना जाता है, हालांकि वे लाखों में एक ही सामान के लिए शुल्क लेते हैं! खैर, मजाक के अलावा, फिल्म 3 इडियट्स के बारे में बात करना लोगों के लिए बहुत बड़ा संदेश था कि व्यक्ति को सपने और जुनून का पालन करना चाहिए जो उसके पास है और उसके बाद सफलता सुनिश्चित है! फिल्म जिसने कई माता-पिता को प्रोत्साहित किया कि वे अपने बच्चों को वह करने दें जो उन्हें पसंद है वह उल्लेखनीय है!
Pink
बॉलीवुड में विशेष रूप से क्रूर बलात्कार के मामलों, छेड़छाड़ और लिंगों में असमानता के बाद फिल्म देखनी चाहिए। इस फिल्म का हाल ही में कई लोगों पर इतना प्रभाव पड़ा कि किसी को भी आजादी के उस अधिकार को नहीं छीनना चाहिए जो आज की पीढ़ी की महिलाओं के पास है। इसके अलावा, महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर लड़की NO कहती है तो इसका मतलब NO है!
Airlift.
जिस फिल्म ने साबित कर दिया कि भारतीय अविश्वसनीय देश में स्वतंत्र रूप से जीने लायक हैं, वह कोई और नहीं बल्कि एयरलिफ्ट है। इस फिल्म ने उन एकता को दिखाया जो भारतीयों के लिए जानी जाती हैं और उन मतभेदों को भी जो आमतौर पर समाज अपनाता है जिसे हर किसी की बेहतरी के लिए टाला जाना चाहिए। हालांकि फिल्म ने भावनात्मक अंत किया और समाज पर एक बड़ा प्रभाव डाला।
Chakde India.
स्पोर्ट्स आधारित फिल्म जिसने खेलों के प्रति लोगों की रूढ़ीवादी विशिष्ट सोच को बदलकर एक ऐसा प्रभाव पैदा किया कि महिलाएं खेल में अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं, इसके बावजूद कि समाज उनके बारे में क्या सोचता और सोचता है। इसने महिला सशक्तीकरण को साहस के साथ दिखाया जो हर महिला खिलाड़ी रखती है।
Dangal.
जिस फिल्म में फिर से बालिकाओं के महत्व को दर्शाया गया था, उसकी काफी सराहना हुई। जिस उपद्रव में समाज रहता है कि दंगल को दिखाए जाने के बाद पुरुष बच्चे के लिए फायदेमंद है, लगभग चौंक गए थे। फिल्म में महान कहानी, बैकअप और महान व्यावसायिकता थी।
फिर से, एक अन्य महिला उन्मुख फिल्म जिसमें कहा गया था कि घर की पत्नियां सिर्फ रोटियां बनाने तक ही सीमित नहीं हैं, जैसा कि कई लोग सोचते हैं! अक्सर, भारतीय घर की पत्नियों को बच्चे पैदा करने और परिवार के लिए भोजन बनाने के लिए जाना जाता है, लेकिन अगर कोई महिला चाहती है कि वह जो चाहती है वह फिल्म में दिखाया गया है।
Baghban.
फिल्म में पुराने भारतीय माता-पिता की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है। फिल्म में, और हेमा मालिनी हेमा मालिनी ने माता-पिता की भूमिका निभाई, जिन्होंने अपने चार बेटों के लिए बहुत कुछ बलिदान किया, जिन्होंने बदले में उन आँसुओं को खून से भरा दिया, बाद में! उस जोड़े को देखकर कभी अकेले और कभी खुशी से रहते थे।
Zindagi Naa Milegi Dobara.
जिस फिल्म ने लगभग जीवन का वर्णन किया था, उसे दर्शकों ने काफी सराहा। फिल्म ने एक संदेश दिया कि किसी को जीवन के लिए उत्सुक और रोमांचित नहीं होना चाहिए, जो कि उनके वर्तमान को उबाऊ और सामान्य बना देता है, किसी को जीवन से भरा होना चाहिए और जीवन को उसी रूप में लेना चाहिए जैसे वह योजनाबद्ध तरीके से नहीं है। इसके अलावा, इसने दर्शकों को बहुत सारे यात्रा लक्ष्य दिए।
Neerja.
इस फिल्म से ‘निर्भय’ होने के कार्य को अच्छी तरह समझा जा सकता है। इस फिल्म में उन्होंने बहादुर एयर होस्टेस की भूमिका पर प्रकाश डाला, जो जीवन से भरी हुई थी और मानवता से भरे हुए को नहीं भूलना चाहिए। आतंकवादियों ने विमान को लगभग समाप्त कर दिया और कुछ लोगों को अभी भी साहसी सोनम कपूर सोनम कपूर को मार डाला, और फिल्म में नीरजा ने स्थिति को अच्छी तरह से संभाला और बाद में अपनी बुद्धिमत्ता से कई लोगों को बचाने के बाद जीवन समाप्त हो गया।
Taree Zameen Par.
जाहिर है, इस फिल्म के बाद अधिकांश माता-पिता इस बात से अवगत होंगे कि किसी को अपने बच्चों को ग्रेड और रैंक के लिए नहीं धकेलना चाहिए बल्कि उन्हें ज्ञान के लिए धकेल दिया जाना चाहिए। फिल्म में डिस्लेक्सिक बच्चे को प्रस्तुत किया गया था जिसे दुर्व्यवहार किया गया, पीटा गया और प्रताड़ित किया गया कि वह पढ़ाई में सुस्त क्यों है? बाद में, जब उन्हें डिस्लेक्सिक पाया गया, तो उन्हें सबसे अधिक सम्मानजनक शिक्षक कदम से कदम मिला कर ठीक हो गया। इसके अलावा, बच्चे के पास उस शिक्षक के बिना पेंटिंग की महान प्रतिभा नहीं थी।
Impact of movies on society essays
Chhichore
kesari
gunjan saxena
bajirao
tanhaji
bahubali
bhagat singh
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drishyam
masaan
dangal
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